Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष-(१) तच्छील। फल की अनपेक्षा से स्वभाव से उस क्रिया में प्रवृत्त होनेवाला। (२) तद्धर्मा। जो स्वभाव के विना भी मेरा यह धर्म है इस भावना से क्रिया में प्रवृत्त होनेवाला। (३) तत्साधुकारी। उस-उस क्रिया को कुशलता से करनेवाला। तृन्
(१) तृन्।१३५ प०वि०-तृन् १।१। अनु०-वर्तमाने, तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिषु इति चानुवर्तते। अन्वय:-धातोर्वर्तमाने तृन् तच्छीलादिषु।
अर्थ:-सर्वेभ्यो धातुभ्यो वर्तमाने काले तृन् प्रत्ययो भवति, तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिषु कर्तृषु।
उदा०-(तच्छील:) कर्ता कटान् देवदत्तः। वदिता जनापवादान् यज्ञदत्तः। (तद्धर्मा) मुण्डयितार: श्राविष्ठायना भवन्ति वधूमूढाम् । अन्नमपहर्तार आहरका भवन्ति श्राद्धे सिद्धे। (तत्साधुकारी) कर्ता कटं देवदत्त: । गन्ता खेटम् यज्ञदत्तः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(धातो:) धातुमात्र से (वर्तमाने) वर्तमानकाल में (हृन्) तृन् प्रत्यय होता है, यदि उस धातु का कर्ता (तच्छीलतद्धर्मतत्साधुकारिषु) तच्छील-उस स्वभाववाला, तद्धर्मा=उसे धर्म माननेवाला और तत्साधुकारी-उसे कुशलतापूर्वक करनेवाला हो।
उदा०-(तच्छील) कर्ता कटान् देवदत्तः। देवदत्त स्वभाव से चटाई बनानेवाला है। वदिता जनापवादान् यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त स्वभाव से लोगों की निन्दा करनेवाला है। (तद्धर्मा) मुण्डयितार: श्राविष्ठायना भवन्ति वधूमूढाम् । श्राविष्ठायन गोत्र के लोग विवाहित वधू का मुण्डन करना अपना कुलधर्म मानते हैं। अन्नमपहर्तार आहरका भवन्ति श्राद्धे सिद्धे । आहरक देश के लोग श्राद्ध तैयार होने पर अन्न-अपहरण करना अपना धर्म समझते हैं। (तत्साधुकारी) कर्ता कटं देवदत्तः । देवदत्त चटाई को कुशलतापूर्वक बनानेवाला है । गन्ता खेटं यज्ञदत्तः । यज्ञदत्त शिकार को कुशलतापूर्वक प्राप्त करनेवाला है।
सिद्धि-(१) कर्ता । कृ+तृन्। कर+तृ। कर्तृ+सु। क अनङ्+सु । कर्तन्+सु । कर्तान्+सु। कर्तान्+० । कर्ता+० । कर्ता।
यहां तच्छील के कर्तृत्व में, वर्तमानकाल में, 'डुकृञ् करणे (तना०उ०) धातु से इस सूत्र से तृन् प्रत्यय है। यहां सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७ १३ १८४) से कृ' को गुण,
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