Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
अन्वयः - विदो धातोर्लटो लस्य परस्मैपदानां वा णल०माः । अर्थ:-विद- धातोः परस्य लटो लस्य परस्मैपदसंज्ञकानां तिबादीनां स्थाने विकल्पेन लादय आदेशा भवन्ति । उदाहरणम्
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लादेशाः तिबादय:
(१) तिप्
(२) तस्
(३)
झि
(४) सिप्
(५) थस्
(६) थ (७) मिप्
(८) वस्
(९) मस्
स वेत्ति ।
तौ वित्तः ।
वे विदन्ति ।
त्वं वेत्सि ।
युवां वित्थः ।
यूयं वित्थ ।
अहं वेद्मि ।
तू जानता है ।
तुम दोनों जानते हो । तुम सब जानते हो । मैं जानता हूं ।
हम दोनों जानते हैं ।
हम सब जानते हैं।
आर्यभाषा - अर्थ - (विदः) विद् (धातो: ) धातु से परे (लट: ) लट् सम्बन्धी (लक्ष्य) लकार के (परस्मैपदानाम् ) परस्मैपद संज्ञक तिप्' आदि आदेशों के स्थान में (वा) विकल्प से यथासंख्य (णल०माः) णल्, अतुस्, उस्, थल्, अथुस्, अ, णल्, व, म आदेश होते हैं। उदा०-उदाहरण और उनका भाषार्थ संस्कृत भाग में देख लेवें ।
णलादय:
स वेद ।
तौ विदतुः ।
ते विदुः ।
त्वं वेत्थ
होता है।
वयं विद्मः ।
युवां विदथुः । यूयं विद ।
अहं वेद ।
आवां विव: । आवां विद्व ।
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भाषार्थ:
वह जानता है ।
वे दोनों जानते हैं।
वे सब जानते हैं।
वयं विद्द्म ।
सिद्धि-(१) वेत्ति। यहां 'विद् ज्ञानें' (अदा०प०) धातु से 'वर्तमाने लट् (३।२।१२३) से 'लट्' प्रत्यय और 'लू' के स्थान में 'तिप्तस्झि० ' ( ३ | ४।७८) से 'तिप्' आदेश है। 'कर्तरि शप्' (३/१/६८ ) से 'शप्' विकरण प्रत्यय और 'अदिप्रभृतिभ्यः शप:' (२।४।७२) से 'शप्' प्रत्यय का लुक् होता है। 'पुगन्तलघूपधस्य च' (७/२।८६) से 'विद्' धातु को लघूपध गुण होता है । 'खरि च' (८/४/५४) से 'विद्' के 'द्' को चर् 'त्' होता है।
(२) वित्त: । यहां 'ल' के स्थान में 'तस्' आदेश है। 'तस्' प्रत्यय के 'सार्वधातुकमपित' (१।२।४) से ङित्' होने से पूर्ववत् प्राप्त लघूपध गुण का 'क्ङिति च' (१1१14) से प्रतिषेध होता है।
(३) विदन्ति। यहां 'लू' के स्थान में 'झि' आदेश और 'झोऽन्तः' (७ 1१1३) से 'झू' के स्थान में 'अन्त' आदेश होता है।
(४) वेत्सि । यहां 'लू' के स्थान में 'सिप्' आदेश और पूर्ववत् लघूपध गुण
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