Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
यहां 'डुपचष् पार्के' (भ्वा०3०) धातु से 'लोट् च' (३ । ३ । १६२) से 'लोट्' प्रत्यय, 'तिप्तस्झि०' (३।४।७८) से लोट्' के 'ल' के स्थान में 'तस्' आदेश और इस सूत्र से 'तस्' के स्थान में 'तस्थस्थमियां तान्तन्ताम:' ( ३ | ४ | १०१ ) से लङ्कृत् 'ताम्' आदेश है। 'कर्तरि शप्' (३ | १|६८ ) से 'शम्' विकरण प्रत्यय होता है ।
(२) पचतम् । यहां 'थस्' प्रत्यय के स्थान में 'तम्' आदेश है।
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(३) पचत। यहां 'थ' प्रत्यय के स्थान में 'त' आदेश है।
(४) पचाव | यहां नित्यं ङितः' (३ । ४ । ९९ ) से 'वस्' प्रत्यय के 'स्' का लोप होता है।
(५) पचाम । यहां पूर्ववत् 'मस्' प्रत्यय के स्' का लोप होता है।
विशेष - लङवत् - यहां 'तत्र तस्येव' (41819१५ ) से षष्ठी विभक्ति के अर्थ में 'ति' प्रत्यय है लङ इव लङवत्, सप्तमी विभक्ति के अर्थ में नहीं- लङि इव लङवत् । इससे लङवद् भाव से 'लङ्' के स्थान में होनेवाले 'ताम्' आदि आदेश ही होते हैं । 'लङ' परे होने पर जो धातु को अट्-आट् आगम होते हैं, वे लोट् लकार में नहीं होते हैं। उ आदेश:
(२) एरुः । ८६ ।
प०वि० - ए: ६ । १ उ: १ । १ ।
अनु०-लस्य, लोट इति चानुवर्तते । अन्वयः - धातोर्लोटो लस्य एरुः ।
अर्थ:-धातोः परस्य लोट्-सम्बन्धिनो लादेशस्य इकारस्य स्थाने उ - आदेशो भवति ।
उदा० - स पचतु । ते पचन्तु ।
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आर्यभाषा - अर्थ - (धातोः) धातु से परे (लोटः ) लोट्-सम्बन्धी ( लस्य) ल आदेश के (ए) इकार के स्थान में (उः) उ-आदेश होता है।
उदा० - स पचतु । वह पकावे । ते पचन्तु ।
सिद्धि - (१) पचतु | पच्+लोट् । पच्+शप्+तिप् । पच्+अ+ति । पच्+अ+तु ।
वे सब पकावें ।
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पचतु ।
यहां पूर्वोक्त 'पच्' धातु से पूर्ववत् 'लोट्' प्रत्यय और उसके 'ल' के स्थान में 'तिप्' आदेश है। इस सूत्र से तिप्' के इकार के स्थान में 'उ' आदेश होता है। ऐसे ही - पचन्तु ।
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