Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४५३ ( स्व:) छन्दोऽधीष्व, व्याकरणमधीष्व, निरुक्तमधीष्व इत्ययमधीते, इतीमावधीयाते, इतीमेऽधीयते इति त्वमधीषे इति युवामधीयाथे, इति यूयमधीध्वे अथवा-छन्दोऽधीध्वम्, व्याकरणमधीध्वम्, निरुक्तमधीध्वमिति यूयमधीध्वे ) इत्यहमधीये, आवामधीवहे, वयमधीमहे ।
अथवा छन्दोऽधीते, व्याकरणमधीते, निरुक्तमधीते इत्ययमधीते इत्यादिकम् ।
आर्यभाषा - अर्थ - (धातुसम्बन्धे ) धात्वर्थों का परस्पर सम्बन्ध होने पर (समुच्चये) क्रिया - समुच्चय अर्थ में विद्यमान (धातो: ) धातु से परे (अन्यतरस्याम्) विकल्प से (लोट्) लोट् प्रत्यय होता है और (लोट :) लोट् के स्थान में (हिस्वौ ) हि और स्व आदेश होते हैं और (तध्वमोः) 'त' और 'ध्वम्' प्रत्यय के स्थान में (वा) विकल्प से 'हि' और 'स्व' आदेश होते हैं ।
उदा०-समस्त उदाहरण संस्कृतभाषा में देख लेवें। उनका यहां भाषार्थमात्र लिखा
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जाता है
(हि) - भाड़ पर जा, मठ में जा, कमरे में जा, स्थाली के ढक्कन तक जा इस प्रकार यह अटन करता है। ये दोनों अटन करते हैं। ये सब अटन करते हैं । तू अटन करता है, तुम सब अटन करते हो। मैं अटन करता हूं। हम दोनों अटन करते हैं, हम सब अटन करते हैं।
अथवा भाड़ पर जाता है, मठ में जाता है, कमरे में जाता है. स्थाली के ढक्कन तक जाता है, ऐसे यह अटन करता है, इत्यादि ।
(स्व) - छन्द पढ़. व्याकरण पढ़, निरुक्त पढ़, ऐसे यह पढ़ता है, ये दोनों पढ़ते हैं. ये सब पढ़ते हैं, तू पढ़ता है. तुम दोनों पढ़ते हो, तुम सब पढ़ते हो, मैं पढ़ता हूं, हम दोनों पढ़ते हैं, हम सब पढ़ते हैं।
अथवा-छन्द पढ़ता है, व्याकरण पढ़ता है, निरुक्त पढ़ता है. ऐसे यह पढ़ता है,
इत्यादि ।
सिद्धि-(१) अट | यहां 'अट गतौं' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से क्रिया - समुच्चय अर्थ में 'लोट्' प्रत्यय है। 'लोट्' के स्थान में हि' आदेश और 'अतो हे:' ( ६ |४|१०५) से 'ह' का लुक् होता है।
(२) अटत। यहां पूर्वोक्त 'अट्' धातु से पूर्ववत् 'लोट्' प्रत्यय और उसके 'त' प्रत्यय के स्थान में विकल्प पक्ष में 'हि' आदेश नहीं होता है।
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(३) अटति । यहां पूर्वोक्त 'अट्' धातु से विकल्प पक्ष में 'लोट्' प्रत्यय नहीं है, अपितु 'वर्तमाने लट्' (३ 1 २ 1 १२३) से 'लट्' प्रत्यय है ।
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