Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (३) जीवसे । यहां जीव प्राणधारणे' (भ्वा०प०) धातु से 'असे' प्रत्यय है। 'असेन्' प्रत्यय करने पर जित्यादिर्नित्यम्' (६।१।१९१) से आधुदात्त स्वर विशेष होता है-जीवसे । जीवसे जीने के लिये।
(४) प्रेषे। 'प्र' उपसर्गपूर्वक इण् गतौं' (अदा०प०) धातु से क्से' प्रत्यय है। प्रत्यय के 'कित्’ होने से विडति च' (१।१।५) से इण्' धातु को गुण का प्रतिषेध और आद् गुणः' (६।१।८४) से गुण रूप एकादेश होता है। प्रेषे=प्रगति के लिये।
(५) श्रियसे । श्रि+कसेन् । श्रि+असे । श्रू इयड्+असे । श्रिय्+असे। श्रियसे+सु । श्रियसे।
___ यहां श्रिज्ञ सेवायाम्' (भ्वा०3०) धातु से कसेन्' प्रत्यय है। प्रत्यय के कित्' होने से पूर्ववत् गुण का प्रतिषेध होता है। 'अचि अनुधातु०' (६।४ १७७) से 'श्रि' धातु को 'इयङ्' आदेश होता है। श्रियसे सेवा के लिये।
(६) उपाचरध्यै । उप, आङ् उपसर्गपूर्वक 'चर गतौ' (भ्वा०प०) धातु से 'अध्यै' प्रत्यय है। 'अध्यैन्' करने पर 'जित्यादिर्नित्यम्' (६।१।१९१) से आधुदात्त स्वर विशेष होता है-उपाचरध्यै । उपाचरध्यै उपचार के लिये।
. (७) आहुवध्यै । आड+हु+कध्यै। आ+ह उव+अध्यै। आ+हुव्+अध्यै । आहुवध्यै+सु । आहुवध्यै।
यहां 'आङ्' उपसर्गपूर्वक 'हु दानादनयो:, आदाने चेत्येके' (जुहो०प०) धातु से कध्यै' प्रत्यय है। प्रत्यय के कित्' होने से पूर्ववत् गुण का प्रतिषेध होता है। 'अचि अनुधातु०' (६।४।७७) से हु' धातु को उवङ्' आदेश होता है। आहुवध्यै=आहुति के लिये।
(८) श्रियध्यै । यहां श्रिङ्ग सेवायाम्' (भ्वा०उ०) धातु से कध्यैन्' प्रत्यय है। शेष कार्य श्रियसे' (५) के समान है। श्रियध्यै सेवा के लिये।
(९) पिबध्यै । पा+शध्यै। पिब्+अध्यै। पिबध्यै+सु। पिबध्यै।
यहां पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से शध्यै' प्रत्यय है। 'पाघ्राध्मा०' (७/३।७८) से 'पा' के स्थान में पिब' आदेश होता है। पिबध्यै-पीने के लिये।
(१०) मादयध्यै । मद+णिच्। मादि+शध्यैन्। मादे+अध्यै। मादयध्यै+सु । मादयध्यै।
यहां 'मदी हर्षे' (भ्वा०प०) धातु से हेतुमति च' (३।१।२६) से णिच्’ प्रत्यय और णिजन्त मादि धातु से शध्यैन्' प्रत्यय है, तत्पश्चात् पूर्ववत् गुण और 'अय्' आदेश होता है। मादयध्यै हर्षित करने के लिये।
(११) पातवै । 'पा पाने' (भ्वा०प०) धातु से तवै' प्रत्यय है। पातवै-पीने के लिये।
(१२) सूतवे। षूङ् प्राणिगर्भविमोचने (अदा०आ०) धातु से तवेङ्' प्रत्यय है। प्रत्यय के 'डित्' होने से पूर्ववत् गुण का प्रतिषेध होता है। सूतवे जन्म के लिये।
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