Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः
४७७
आर्यभाषा- अर्थ - (समानकर्तृकयोः) समान कर्तावाले दो धातु अर्थों में से (पूर्वकाले) पूर्वकाल विषयक धात्वर्थ में विद्यमान (स्वादुमि) स्वादु- अर्थक शब्द उपपद होने पर (कृञः) कृञ् (धातोः) धातु से परे ( णमुल् ) णमुल् प्रत्यय होता है।
उदा०-स्वादुङ्कारं भुङ्क्ते । स्वाद बनाकर खाता है । सम्पन्नङ्कारं भुङ्क्ते । दूध, दही, घृत आदि से सम्पन्न बनाकर खाता है। लवणङ्कारं भुङ्क्ते । नमक डालकर खाता है।
सिद्धि - (१) स्वादुङ्कारम् । स्वादुम् +कृ+णमुल् । स्वादुम्+कार्+अम् । +कार्+अम् । स्वादुङ्कारम्+ सु । स्वादुङ्कारम् ।
स्वादु+
यहां 'स्वादुम्' शब्द उपपद होने पर पूर्वोक्त 'कृञ्' धातु से इस सूत्र से 'णमुल्’ प्रत्यय है। 'णमुल्' प्रत्यय के 'णित्' होने से 'अचो ञ्णिति' (७।२1११५) से 'कृ' धातु को वृद्धि होती है। यहां स्वादुम्' शब्द मकारान्त निपातित है। इससे च्वि-अर्थ में स्त्रीलिङ्ग में 'वोतो गुणवचनात्' (४।१।४४) से 'ङीप् ' प्रत्यय नहीं होता है-अस्वाद्व स्वाद्वीं कृत्वा भुङ्क्ते इति स्वादुङ्कारं भुङ्क्ते । 'म्' को पूर्ववत् अनुस्वार और परसवर्ण होता है । 'कृन्मेजन्तः' (१।१ । ३८) से स्वादुङ्कार की अव्यय संज्ञा है और पूर्ववत् 'सुप्' का लुक् होता है।
(२) सम्पन्नङ्कारम्। यहां सम्पन्नम् शब्द उपपद होने पर पूर्ववत् 'णमुल्’ प्रत्यय है।
(३) लवणङ्कारम् । यहां 'लवणम्' शब्द उपपद होने पर 'कृ' धातु से पूर्ववत् 'णमुल्' प्रत्यय है।
जाता है
विशेष-स - स्वादुम् - यहां स्वादु शब्द तथा इसके पर्यायवाची शब्दों का ग्रहण किया । स्वादु शब्द यहां मकारान्त निपातित है, उसका फल ऊपर बतलाया गया है। स्वादुम् शब्द के मकारान्त निपातन से सम्पन्नम् आदि शब्द भी मकारान्त ग्रहण किये जाते हैं।
णमुल् (सिद्धाप्रयोगे)
(२) अन्यथैवंकथमित्थंसु सिद्धाप्रयोगश्चेत् । २७ । प०वि० - अन्यथा एवम् कथम् इत्थंसु ७ । ३ सिद्धाप्रयोगः १ ।१ चेत् अव्ययपदम् ।
सo - अन्यथा च एवं च कथं च इत्थं च ते - अन्यथा० इत्थमः, तेषु-अन्यथा०इत्थंसु (इतरेतरयोगद्वन्द्वः ) । न प्रयोग इति अप्रयोगः, सिद्धोऽप्रयोगो यस्य स:-सिद्धाप्रयोगः (नगर्भितबहुव्रीहि: ) ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org