Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
View full book text
________________
५२२
पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् विशेष-वेद में 'गांमा हिंसी:' तथा गौ को 'अघ्न्या' (यजु० ११) कहा गया है। अत: गौ की हत्या करना वेदविरुद्ध है और उपकारी पशु को मारना पाप भी है। अत: यहां हन्' धातु का अर्थ हिंसा नहीं अपितु प्राप्त करना है। जिसको दान करने के लिये गौ प्राप्त की जाती है वह ऋत्विक विद्वान् गोघ्न कहाता है। लक्षणा शक्ति से 'गौ' शब्द का अर्थ दूध, घृत, दही आदि भी होता है। जिसकी सेवा के लिए गौ का दुग्ध आदि प्राप्त किया जाता है वह ऋत्विक् विद्वान् 'गोघ्न कहाता है।
काशिकाकार पं0 जयादित्य ने यहां हन्' धातु का हिंसा अर्थ ग्रहण किया है जो वेदविरुद्ध होने से अप्रमाण है। निपातनम् (अपादाने)
(७) भीमादयोऽपादाने।७४। प०वि०-भीम-आदय: ५ ।३ अपादाने ७।१। स०-भीम आदिर्येषां ते भीमादय: (बहुव्रीहिः)। अर्थ:-भीमादय: शब्दा अपादानेऽर्थे निपात्यन्ते। उदा०-बिभेति यस्मात् स भीमः, भीष्मः, भयानको वा।
भीम: । भीष्मः । भयानक: । वरु: । चरु: । भूमि: । रज: । संस्कारः। संक्रन्दनः । प्रपतन: । समुद्रः । स्रुच: । सुक् । खलति: । इति भीमादयः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(भीमादय:) भीम आदि शब्द (अपादाने) अपादान कारक अर्थ में निपातत हैं।
उदा०-बिभेति यस्मात् स भीमः, भीष्मः, भयानकः । जिससे डर लगता है उसे भीम, भीष्म, भयानक कहते हैं।
सिद्धि-(१) भीमः । भी+मक् । भी+म। भीम+सु। भीमः।
यहां जिभी भये' (जु०प०) धातु से भिय: षुग् वा' (उणा० १।१४८) से मक्' प्रत्यय है। कर्तरि कृत् (३।४।६०) से उणादि का 'मक्' प्रत्यय कर्ता अर्थ में प्राप्त था। इस सूत्र से अपादान अर्थ में निपातित किया गया है। विकल्प पक्ष में 'पुक्’ आगम होने पर-भीष्मः।
(२) भयानकः । भी+आनक। भे+आनक । भयानक+सु। भयानकः ।
यहां पूर्वोक्त 'भी' धातु से 'आनक: शीभियः' (उणा० ३।८२) से उणादि का 'आनक' प्रत्यय पूर्ववत् अपादान अर्थ में निपातित है। सार्वधातुकार्धधातुकयोः' (७।३।८४) से 'भी' धातु को गुण और एचोऽयवायाव:' (६।१।७५) से 'अय्' आदेश होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org