Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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। तृतीयाध्यायस्य चतुर्थः पादः
५२३ विशेष-भीम आदि शब्द उणादि प्रत्ययान्त हैं। ताभ्यामन्यत्रोणादयः' (३।४।७५) से अपादान कारक में उणादि प्रत्ययान्त शब्दों का प्रतिषेध होने से इस सूत्र से उनका अपादान अर्थ में विधान किया गया है। उणादीनामर्थ:
(८) ताभ्यामन्यत्रोणादयः ७५। प०वि०-ताभ्याम् ५ ।२ अन्यत्र अव्ययपदम्, उणादय: १।३। स०-उण् आदिर्येषां ते-उणादय: (बहुव्रीहिः)।
अर्थ:-उणादय: प्रत्ययास्ताभ्याम्-सम्प्रदानापादानाभ्यामन्यत्र कारके भवन्ति। ‘कर्तरि कृत्' (३।४ १६०) इति कर्तरि कारके एव प्राप्तेऽन्येषु कर्मादिषु कारकेष्वपि विधीयन्ते।
उदा०-कृषितोऽसौ कृषिः। तनित इति तन्तु: । वृत्तमिति वर्त्म। चरितमिति चर्म।
___ आर्यभाषा-अर्थ-(उणादयः) उण-आदि प्रत्यय (ताभ्याम्) उन सम्प्रदान और अपादान कारक से (अन्यत्र) अन्य कारक में होते हैं। उण्-आदि प्रत्यय कर्तरि कृत (३।४।६०) से कर्ता कारक में ही प्राप्त थे इस सूत्र से अन्य कर्म आदि कारकों में भी विहित किये गये हैं।
उदा०-कृषितोऽसौ कृषिः । जिसे कृषित-विलिखित किया गया है वह कृषि खेती। तनित इति तन्तुः। जिसे विस्तृत किया गया है वह तन्तु सूत्र। वृत्तमिति वर्म। जिसे चलने के लिए बर्ता गया है वह वर्म=मार्ग। चरितमिति चर्म । जिसे किसी प्राणी के शरीर से उच्चरित (उखाड़ना) किया गया है वह चर्म चाम।
सिद्धि-(१) कृषिः । कृष्+इन् । कृष्+इ। कृषि+सु । कृषिः ।
यहां कृष विलेखने' (भ्वा०प०) धातु से इगुपधात् कित (उणा० ४।१२०) से कर्म कारक में 'इन्' प्रत्यय है। प्रत्यय के किद्वद्भाव से डिति च' (१।११५) से प्राप्त लघूपध गुण का प्रतिषेध होता है।
(२) तन्तुः । तन्+तुन्। तन्+तु। तन्तु+सु। तन्तुः।
यहां तनु विस्तारे' धातु से सितमिगमि०' (उणा० १।६९) से कर्म कारक में तन्' प्रत्यय है।
(३) वर्त्म। वृत्+मनिन्। वर्त+मन् । वमन्+सु। वर्त्म।
यहां वृतु वर्तने (भ्वा०आ०) धातु से सर्वधातुभ्यो मनिन् (उणा० ४।१४५) से कर्म कारक में मनिन्’ प्रत्यय है। पुगन्तलघूपधस्य च' (७।३।८६) से वृत् धातु को लघूपध गुण होता है।
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