Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(करणे) करण कारक में विद्यमान (स्तम्बे) स्तम्ब-उपपदवाले (हनः) हन् (धातो:) धातु से परे (क:) क प्रत्यय (च) और (अप) अप् प्रत्यय होता है।
उदा०-स्तम्बो हन्यते येन स:-स्तम्बन: (क:)। स्तम्बघन: (अप्)। जिससे स्तम्ब घास आदि काटा जाता है वह स्तम्बघ्न/स्तम्बघन खुरपा आदि।
सिद्धि-(१) स्तम्बघ्नः । स्तम्ब+हन्+क। स्तम्ब+हन्+अ। स्तम्ब+घ्न्+अ। स्तम्बघ्न+सु। स्तम्बघ्नः।
यहां स्तम्ब उपपद पूर्वोक्त हन्' धातु से करण कारक में इस सूत्र से क' प्रत्यय है। 'गमहनजन०' (६।४।९८) से हन्' धातु को उपधा लोप और हो हन्तेज़िन्नेष' (७।३।५४) से हन्' धातु के ह' को कुत्व 'घ' होता है।
(२) स्तम्बघन: । यहां स्तम्ब उपपद पूर्वोक्त हन्' धातु से पूर्ववत् ‘अप्' प्रत्यय और हन्' के स्थान में 'घन्' आदेश है। अप्
(६६) परौ घः।८४। प०वि०-परौ ७१ घ: ११ । अनु०-अप, हन:, करणे इति चानुवर्तते । अन्वय:-करणे परौ हनो धातोरप्, हनश्च घः।
अर्थ:-करणे कारके वर्तमानात् परि-पूर्वाद् हन्-धातो: परोऽप् प्रत्ययो भवति, हन: स्थाने च घ-आदेशो भवति।
उदा०-परितो हन्यते येन स:-परिघ: । पलिघः ।
आर्यभाषा-अर्थ-(करणे) करण (कारके) कारक में विद्यमान (परौ) परि-उपसर्गपूर्वक (हन:) हन् (धातो:) धातु से परे (अप्) अप् प्रत्यय होता है और हन्' के स्थान में 'घ' सवदिश होता है।
___ उदा०-परितो हन्यते येन स:-परिघः । पलिघ: । सब ओर मार करनेवाला शस्त्र (लोह का मुद्गर)।
सिद्धि-(१) परिधः । परि+हन्+अप् । परि+घ+अ। परिघ+सु। परिघः ।
यहां परि' उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त हन्' धातु से करण कारक में इस सूत्र से 'अप्' प्रत्यय है और 'हन्' के स्थान में 'घ' सवदिश होता है।
(२) पलिघः । यहां परेश्च घाङ्कयोः' (८।२।२२) से परि' उपसर्ग के 'र' को विकल्प से ल' आदेश होता है।
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