Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (४) आप्लव: । 'आङ्' उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त 'प्लु' धातु से विकल्प पक्ष में पूर्ववत् 'अप्' प्रत्यय है। घञ्
(३३) अवे ग्रहो वर्षप्रतिबन्धे १५१। प०वि०-अवे ७।१ ग्रह: ५१ वर्ष-प्रतिबन्धे ७।१ ।
स०-वर्षस्य प्रतिबन्ध इति वर्षप्रतिबन्धः, तस्मिन्-वर्षप्रतिबन्धे (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-घञ्, विभाषा इति चानुवर्तते ।
अन्वयः-अकर्तरि कारके भावे चार्थे ग्रहो धातोर्विभाषा घञ्, वर्षप्रतिबन्धे।
अर्थ:-अकर्तरि कारके भावे चार्थे वर्तमानाद् अव-पूर्वाद् ग्रह्-धातो: परो विकल्पेन घञ् प्रत्ययो भवति, वर्षप्रतिबन्धेऽभिधेये। पक्षेऽप् प्रत्ययो भवति। प्राप्तकालस्य वर्षस्य कुतश्चिन्निमित्तादभावो वर्षप्रतिबन्ध इत्युच्यते।
उदा०-अवग्राहो देवस्य (घञ्) । अवग्रहो देवस्य (अप्) ।
आर्यभाषा-अर्थ-(अकर्तरि) कर्ता से भिन्न (कारके) कारक में (च) और (भावे) भाव अर्थ में विद्यमान (अवे) अव-उपसर्गपूर्वक (ग्रह:) ग्रह (धातो:) धातु से परे (विभाषा) विकल्प से (घञ्) घञ् प्रत्यय होता है। (वर्षप्रतिबन्धे) यदि वहां वर्षा के अभाव का कथन हो। विकल्प पक्ष में 'अप' प्रत्यय होता है। वर्षाकाल में किसी कारण से वर्षा का अभाव होना वर्षप्रतिबन्ध कहाता है।
उदा०-अवग्राहो देवस्य (घञ्)। अवग्रहो देवस्य (अप) ! पर्जन्य देवता का न बरसना।
सिद्धि-(१) अवग्राह: । अव+ग्रह+घञ् । अव+ग्राह+अ । अवग्राह-सु । अवग्राह: ।
यहां 'अप' उपसर्गपूर्वक 'ग्रह उपादाने' (ऋत्या०प०) धातु से भाव में तथा वर्षप्रतिबन्ध अर्थ में इस सूत्र से घञ्' प्रत्यय है। अत उपधाया:' (७१२।११६) से ग्रह धातु को उपधावृद्धि होती है।
(२) अवग्रह: । अव+ग्रह+अप् । अन+ग्रह+अ । अवग्रह+सु । अवग्रहः ।
यहां अव' उपसर्गपूर्वक पूर्वोक्त 'ग्रह' धातु से 'ग्रहवृदनिश्चिगमश्च' (३।३।५८) से 'अप' प्रत्यय है।
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