Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः शत्रु की हिंसा का साधन (शस्त्र)। (यु) यौति येनेति योत्रम् । द्रव्य को मिश्रित करने का साधन (पलटा आदि)। (युज) युनक्ति येनेति योक्त्रम् । बैल आदि को जोड़ने का साधन (जोत)। 'आबन्धो योत्रं योक्त्रमित्यमरः । (स्तु) स्तौति येनेति स्तोत्रम् । देवता आदि की स्तुति का साधन (शिवस्तोत्र आदि)। (तुद) तुदति येनेति तोत्रम् । व्यथा का साधन (बैल आदि के ताडनादि का साधन सांटा पैनी आदि)। 'प्राजनं तोदनं तोत्र'मित्यमरः। (सि) सिनाति येनेति सेत्रम् । बन्धन का साधन (रस्सी आदि)। (सिच) सिञ्चति येनेति सेक्त्रम् । भूमि आदि को सींचने का साधन (मशक आदि)। (मिह) मेहति येनेति मेद्रम् । गर्भ में वीर्य-सेचन का साधन (पुरुष का लिङ्ग)। (पत) पतति येनेति पत्रम् । देशान्तर में गमन का साधन (वाहनमात्र)। (दश) दंशति ययेति दंष्ट्रा । खाद्यपदार्थ को काटने का साधन (दाढ)। (नह) नह्यति ययेति नद्धी । बन्धन का साधन (चमड़े की रस्सी)। जनभाषा में 'बादी' अथवा 'जोत' कहते हैं। त्रीणि चर्मरज्जो:'नधी वधी वरत्रा स्या'दित्यमरः ।
सिद्धि-(१) दात्रम् । यहां 'दाप लवने (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'ष्ट्रन्' प्रत्यय है।
(२) नेत्रम् । णीञ् प्रापणे' (भ्वा०उ०) । सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७ ।३ १८४) से नी' धातु को गुण होता है।
(३) 'शस हिंसायाम्' (भ्वा०प०)। (४) योत्रम् । यु मिश्रणे' (अदा०प०) पूर्ववत् गुण होता है।
(५) योक्त्रम्। 'युजिर् योगे' (रुधा०प०) पुगन्तलघूपधस्य च' (७ ।३।८५) से 'युज्' धातु को लघूपध गुण होता है। 'चो: कुः' (८।२।३०) से युज् के 'ज्' को कुत्व ग् और 'खरि च' (८।४।५४) से ग को चर् क् होता है।
(६) स्तोत्रम्। 'ष्टुञ स्तुतौ' (अदा०3०) पूर्ववत् गुण होता है। (७) तोत्रम् । तुद व्यथने (तु०प०) पूर्ववत् गुण होता है। (८) सेत्रम् । षिञ् बन्धने (जया०उ०)। (९) सेक्त्रम् । पिचिर् क्षरणे' (रुधा०उ०) ।
(१०) मेद्रम् । 'मिह सेचने' (भ्वा०प०)। मिह+ष्ट्रन् । मिह+त्र । मेढ्+द्र। मे०+द्र। मेढ़+सु। मेढ़म्। हो ढः' (८।२।३१) से धातु के ह को द आदेश, 'झषस्तथोर्थोऽध:' (८।२।४०) से त्र' के त् को ध् आदेश, 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४०) प्रत्यय के ध् को टुत्व द होता है। दो ढे लोप:' (८।३।१३) से पूर्व द् का लोप होता है।
(११) पत्रम् । 'पत्लु गतौ' (भ्वा०प०)।
(१२) दंष्ट्रा । दश दशने' (भ्वा०प०)। 'व्रश्चभ्रस्ज०' (८।२।३६) से दंश् के श् को ष् और 'ष्टुना ष्टुः' (८।४।४०) से 'त्र' प्रत्यय के त् को ट् होता है। 'अजाद्यतष्टा (४।१।४) से स्त्रीलिङ्ग में टाप् प्रत्यय होता है।
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