Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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ण्विन्
पाणिनीय-अष्टाध्यायी- प्रवचनम्
(१) मन्त्रे श्वेतवहोक्थशस्पुरोडाशो ण्विन् ॥७१ । प०वि०-मन्त्रे ७ ।१ श्वेतवह- उक्थशस् - पुरोडाश: ५ | १ ण्विन् १ । १ । स०-श्वेतवहश्च उक्थशश्च पुरोडाशश्च एतेषां समाहारःश्वेतवहोक्थशस्पुरोडाश्, तस्मात् - श्वेतवहोक्थशस्पुरोडाश: ( समाहारद्वन्द्वः) । अनु०- सुपि इत्यनुवर्तते ।
अर्थ:-मन्त्रे विषये श्वेतवहोक्थशस्पुरोडाश्भ्यो धातुभ्यो ण्विन् प्रत्ययो भवति । अत्र उपपदैः सह धातुसमुदाया निपात्यन्ते
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उदा० - श्वेता एनं वहन्तीति श्वेतवा : ( इन्द्र: ) । उक्थानि शंसति, उक्थैर्वा शंसतीति उक्थशाः (यजमानः ) (ऋ० ७।१९।६)। पुरा दाशन्त एनमिति पुरोडा (ऋ० ३।२।७१) ।
आर्यभाषा-अर्थ- (मन्त्रे) मन्त्र विषय में (श्वेतवहोक्थशसपुरोडाशः) श्वेतवह, उक्थशस्, पुरोडाश् (धातोः) धातुओं से (ण्विन् ) ण्विन् प्रत्यय होता है। यहां उपपद सहित धातु समुदाय निपातित हैं।
उदा० - श्वेता एनं वहन्तीति श्वेतवा : ( इन्द्र: ) । श्वेत घोड़े जिसके वाहन हैं, वह इन्द्र = राजा । उक्थानि शंसति, उक्थैर्वा शंसतीति उक्थशा यजमानः । उक्थ = प्रशंसनीय मन्त्रों के अर्थों का उपदेश करनेवाला विद्वान् अथवा प्रशंसनीय मन्त्रों से परमेश्वर की स्तुति करनेवाला यजमान । पुर एनं दाशन्त इति पुरोडा: । विधिपूर्वक संस्कृत अन्नविशेष जिसकी पहले अग्नि में आहुति दी जाती है पश्चात् उसका भक्षण (सेवन) किया जाता है। सिद्धि - (१) श्वेतवा: । यहां 'श्वेत' कर्ता सुबन्त उपपद होने पर वह प्रापणें (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'ण्विन्' प्रत्यय है। 'श्वेतवहादीनां डस् पदस्य च ( भा०वा० ३/२/७१ ) से 'ण्विन्' प्रत्यय के स्थान में डस् आदेश होता है । 'डस्' आदेश के डित् होने से 'वा०-डित्यभस्यापि टेर्लोपः' (६ । ४ । १४३) से वह के टि-भाग का लोप होता है। श्वेत+व्+अस्= श्वेतवस् + सु । 'अत्वसन्तस्य चाधातो:' ( ६ । ४ । १४) से दीर्घ और 'हल्याब्भ्यो दीर्घात् ० ' ( ६ |१/६६ ) से 'सु' का लोप होता है।
(२) उक्थशाः | यहां 'उक्थ' कर्म वा करण सुबन्त उपपद होने पर 'शंसु स्तुतौं' ( भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से ण्विन्' प्रत्यय है। निपातन से 'शंस्' के न् का लोप हो जाता है । 'ण्विन्' प्रत्यय के स्थान में पूर्ववत् डस् आदेश आदि कार्य होते हैं ।
(३) पुरोडा: । यहां 'पुरस्' अव्यय उपपद होने पर 'दाशृ दाने' (भ्वा०आ०) धातु से इस सूत्र से 'ण्विन्' प्रत्यय है। धातु के दकार को निपातन से डकरादेश होता है। 'ण्विन्' प्रत्यय के स्थान में पूर्ववत् डस् आदेश आदि कार्य होते हैं।
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