Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम्
(३) ननौ पृष्टप्रतिवचने। १२०। प०वि०-ननौ ७१ पृष्ट-प्रतिवचने ७१।
स०-पृष्टस्य प्रतिवचनमिति पृष्टप्रतिवचनम्, तस्मिन्-पृष्टप्रतिवचने (षष्ठीतत्पुरुषः)।
अनु०-भूते, लट् इति चानुवर्तते । अन्वय:-ननावुपपदे पृष्टप्रतिवचने भूते धातोर्लट् ।
अर्थ:-ननु-शब्दे उपपदे पृष्टप्रतिवचने सति भूते कालेऽर्थे वर्तमानाद् धातो: परो लट् प्रत्ययो भवति । लुडोऽपवादः ।
उदा०-यज्ञदत्तो देवदत्तमप्राक्षीत्-अकार्षी: कटं देवदत्त ? ननु करोमि भोः। अवोचस्तत्र किञ्चिद् देवदत्त ? ननु ब्रवीमि भोः।
___ आर्यभाषा-अर्थ-(ननौ) ननु शब्द उपपद होने पर तथा (पृष्टप्रतिवचने) प्रश्न का उत्तर देने में (भूते) भूतकाल अर्थ में विद्यमान (धातो:) धातु से परे (लट्) लट्-प्रत्यय होता है। यह लुड् लकार का अपवाद है।
उदा०-यज्ञदत्त ने देवदत्त से पूछा-अकार्षी: कटं देवदत्त ? हे देवदत्त ! क्या तूने चटाई बना ली है ? देवदत्त ने उत्तर दिया-ननु करोमि भोः ! हां भाई ! मैंने चटाई बना ली है। अवोचस्तत्र किञ्चिद् देवदत्त ! हे देवदत्त ! क्या तूने वहां कुछ कहा था? देवदत्त ने उत्तर दिया-ननु ब्रवीमि भोः । हां भाई ! कहा था।
सिद्धि-(१) करोमि। यहां ननु' शब्द उपपद होने पर प्रश्न का उत्तर देने में भूतकाल अर्थ में विद्यमान डुकृञ् करणे (तना०3०) धातु से इस सूत्र से लट्' प्रत्यय है। लट्' प्रत्यय के स्थान में मिप्' आदेश है। तनादिकृञभ्य उ:' (३।११७९) से विकरण 'उ' प्रत्यय और सार्वधातुकार्धधातुकयो:' (७।३।८४) से अङ्ग को गुण होता है।
(२) ब्रवीमि । यहां ननु' शब्द उपपद होने पर पूर्वोक्त अर्थ में ब्रूज व्यक्तायां वाचि' (अदा०उ०) धातु से इस सूत्र से लट्' प्रत्यय है। लट्' के स्थान में मिप्’ आदेश है। शेष कार्य ब्रवीति (३।२।११९) के समान है। लट्-विकल्पः
(४) नन्वोर्विभाषा।१२१। प०वि०-न-न्वोः ७।२ विभाषा ११ । स०-नश्च नुश्च तौ-ननू, तयो:-नन्वो: (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
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