Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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तृतीयाध्यायस्य द्वितीयः पादः शतृ+शानच् (लडादेशः)
(३) सम्बोधने च।१२५। प०वि०-सम्बोधने ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-वर्तमाने लट: शतृशानचाविति चानुवर्तते। अन्वय:-सम्बोधने च वर्तमाने धातो: परस्य लट: शतृशानचौ।
अर्थ:-सम्बोधने च विषये वर्तमाने कालेऽर्थे विद्यमानाद् धातो: परस्य लट: स्थाने शतृशानचावादेशौ भवत: ।
उदा०-(शतृ) हे पचन् ! (शानच्) हे पचमान !
आर्यभाषा-अर्थ-(सम्बोधने) सम्बोधन विषय में (च) भी (वर्तमाने) वर्तमानकाल अर्थ में विद्यमान (धातो:) धातु से परे (लट:) लट् के स्थान में (शतृशानचौ) शतृ और शानच् आदेश होते हैं।
उदा०-(शतृ) हे पचन् ! हे पकाते हुये दिवदत्त) ! (शानच्) हे पचमान ! हे पकाते हुये (देवदत्त)।
सिद्धि-(१) पचन् । पच्+लट् । पच्+शतृ। पच्+शप्+अत्। पच्+अ+अत्। पचत्+सु । पचनुमत्+सु। पचन्त्+सु। पचन्।
यहां सम्बोधन विषय में पूर्वोक्त पच्' धातु से इस सूत्र से लट्' प्रत्यय के स्थान में 'शतृ' आदेश है। यहां पूर्ववत् (३।२।१२४) शप्' विकरण-प्रत्यय और नुम् आगम है। हल्ज्याब्स्यो०' (६।१।६६) से 'सु' का लोप और संयोगान्तस्य लोप:' (८।२।२३) से संयोगान्त त्' का लोप होता है।
(२) पचमान । यहां सम्बोधन विषय में पूर्वोक्त 'पच्' धातु से इस सूत्र से लट्' प्रत्यय के स्थान में शानच् आदेश है। 'एहस्वात् सम्बुद्धेः' (६।१।६७) से सम्बुद्धि 'सु' प्रत्यय का लोप होता है। शेष कार्य पूर्ववत् (३।२।१२४) है। शतृ+शानच् (लडादेशः)
(४) लक्षणहेत्वोः क्रियायाः।१२६ । प०वि०-लक्षण-हेत्वो: ७।२ क्रियाया: ६।१।
स०-लक्षणं च हेतुश्च तौ-लक्षणहेतू, तयोः-लक्षणहेत्वो: इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-वर्तमाने, लट: शतृशानचाविति चानुवर्तते । अन्वय:-क्रियायालक्षणहेत्वोर्वर्तमाने धातो: परस्य लट: शतृशानचौ।
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