Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् अर्थ:-स्म-शब्दरहिते पुरा-शब्दे उपपदेऽनद्यतने भूते कालेऽर्थे वर्तमानाद् धातो: परो विकल्पेन लुङ् लट् च प्रत्ययो भवति ।
उदा०-वसन्तीह पुरा छात्रा: (लट्)। अवात्सुरिह पुरा छात्रा: (लुङ)। एताभ्यां मुक्ते यथाविषयमन्येऽपि प्रत्यया भवन्ति-अवसन्निह पुरा छात्राः (लङ्)। ऊषुरिहपुरा छात्रा: (लिट)।
आर्यभाषा-अर्थ-(अस्मे) स्म-शब्द से रहित (पुरि) पुरा शब्द उपपद होने पर (अनद्यतने) आज को छोड़कर (भूते) भूतकाल अर्थ में विद्यमान (धातो:) धातु से परे (लुङ्) लुङ् (च) और (लट्) लट् प्रत्यय होता है।
उदा०-वसन्तीह पुरा छात्रा: (लट्) अवात्सुरिह पुरा छात्रा: (लुङ्)। पहले यहां छात्र रहते थे। लुङ् और लट् से मुक्त होने पर धातु से यथाविषय प्रत्यय होते हैं-अवसन्निह पुरा छात्रा: (लङ्) । ऊषुरिह पुरा छात्रा: (लिट्)। पहले यहां छात्र रहते थे।
सिद्धि-(१) वसन्ति। यहां 'पुरा' शब्द उपपद होने पर अनद्यतन भूतकाल अर्थ में वस निवासे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से लट्' प्रत्यय है। लट्' के स्थान में 'झि' आदेश झोऽन्तः' (७।१।३) से 'झ्' के स्थान में 'अन्त' आदेश और कर्तरि शप (३।१।६८) से 'शप्' विकरण-प्रत्यय होता है।
(२) अवात्सुः। वस्+लुड्। अट्+वस्+च्लि+लुङ। अ+वस्+सिच्+झि। अ+वस्+स्+जुस् । अ+वास्+स+उस् । अ+वात्+स्+उस् । अवात्सुः ।
यहां 'पुरा' शब्द उपपद होने पर पूर्वोक्त अर्थ में पूर्वोक्त वस्' धातु से इस सूत्र से लुङ्' प्रत्यय है। ले: सिच् (३।१।४४) से चिल' के स्थान में 'सिच' आदेश, 'सिजभ्यस्तविदिभ्यश्च' (३।४।१०९) से 'झि' के स्थान में 'जुस्' आदेश, विदव्रजहलन्तस्याचः' (७।२।३) से वस्' धातु के अच्’ को वृद्धि और सस्यार्धधातुके (७।४।४९) से वस्' के 'स्' को 'द्' और 'खरि च' (८१४१५४) से 'द्' को त्' आदेश होता है।
(३) अवसन् । वस्+लड्। अट्+वस्+झि। अ+ वस्+शप्+अन्ति । अ+वस्+अ+अन्त् । अवसन्।
यहां पुरा' शब्द उपपद होने पर पूर्वोक्त अर्थ में पूर्वोक्त वस्' धातु से यथाविषय लङ्' प्रत्यय है। लङ्' के स्थान में झि' आदेश झोऽन्तः' (७।१३) से 'झ्' के स्थान में अन्त' आदेश, कर्तरि शप् (३।१।६८) से शप' विकरण-प्रत्यय, इतश्च (३।४।१००) के अन्ति' के 'इ' का लोप और संयोगान्तस्य लोप:' (८२३३) से 'त्' का लोप होता है।
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