Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् आर्यभाषा-अर्थ-(सुपि) सुबन्त उपपद होने पर (आत्ममाने) स्वयं को मानने अर्थ में विद्यमान (मनः) मन् (धातोः) धातु से परे (खश्) खश् (च) और (णिनिः) णिनि प्रत्यय होता है।
उदा०-(खश्) दर्शनीयमात्मानं मन्यते इति दर्शनीयम्मन्य: (णिनि) दर्शनीयमानी वा। स्वयं को दर्शनीय माननेवाला। (खश्) पण्डितमात्मानं मन्यते इति दर्शनीयम्मन्य: (णिनि) पण्डितमानी वा । स्वयं को पण्डित माननेवाला।
सिद्धि-(१) दर्शनीयम्मन्यः । यहां दर्शनीय' सुबन्त उपपद होने पर 'मन ज्ञाने (दि०आ०) धातु से इस सूत्र से खश् प्रत्यय है। खश् प्रत्यय के खित् होने से दर्शनीय' शब्द को 'अरुर्दिषदजन्तस्य मुम्' (६।३।३५) से मुम्' आगम होता है। 'खश्' प्रत्यय के शित्' होने से 'तिशित सार्वधातुकम्' (३।४।११३) से सार्वधातुक संज्ञा होती है और सार्वधातुक प्रत्यय परे होने पर दिवादिभ्यः श्यन्' (३।१।६९) से 'श्यन्' प्रत्यय होता है। दर्शनीय+मुम्+मन्+श्यन्+खश् । दर्शनीयम्मन्यः ।
(२) दर्शनीयमानी। यहां दर्शनीय' सुबन्त उपपद होने पर 'मन ज्ञाने' (दि०आ०) धातु से इस सूत्र से णिनि' प्रत्यय है। 'अत उपधाया:' (७।२।११६) से 'मन्' धातु को उपधावृद्धि होती है। शेष कार्य 'उष्णभोजी' के समान है। (३) ऐसे ही पण्डितम्मन्य: और पण्डितमानी पद सिद्ध करें। भूतकालप्रत्ययप्रकरणम्
भूते।८४। प०वि०-भूते ७१।
अर्थ:- 'भूते' इत्यधिकारोऽयम्, 'वर्तमाने लट्' (३।२।१२३) इति यावत्। यदित ऊर्ध्वं वक्ष्यामो भूते काले तद् वेदितव्यम् ।
उदा०-अग्रे द्रष्टव्यम्।
आर्यभाषा-अर्थ-(भूते) 'वर्तमाने लट्' (२।३।१२३) तक 'भूते' का अधिकार है। जो इससे आगे कहेंगे उसे भूतकाल में समझना चाहिये।
उदा०-आगे देखें। णिनिः
(१) करणे यजः।८५। प०वि०-करणे ७१ यज: ५।१। अनु०-सुपि, णिनि:, भूते इति चानुवर्तते ।
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