Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (२) गोषाः। यहां 'गो' सुबन्त उपपद होने पर घणु दाने (तना०उ०) धातु से इस सूत्र से विट्' प्रत्यय होता है। सनोतेरन:' (८।३।१०८) से सन्’ को षत्व होता है। शेष पूर्ववत् है। ऐसे ही-नृषा।
(३) विसखा: । यहां विस' सुबन्त उपपद होने पर खनु अवदारणे (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र विट्' प्रत्यय है। ऐसे ही-कूपखाः ।
(४) दधिक्रा: । यहां दधि' सुबन्त होने पर क्रमु पादविक्षेपे' (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से विट्' प्रत्यय है।
(५) अग्रेगा: । यहां ‘अग्रे’ सुबन्त उपपद होने पर 'गम्लु गतौ (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से विट्' प्रत्यय है। तत्पुरुषे कृति बहुलम्' (६ ।३।१२) से सप्तमी विभक्ति का अलुक् होता है। विट्
(२) अदोऽनन्ने।६८। प०वि०-अद: ५।१ अनन्ने ७१। स०-न अन्नमिति अनन्नम्, तस्मिन्-अनन्ने (नञ्तत्पूरुषः)। अनु०-छन्दसि इति निवृत्तम्, सुपि इत्यनुवर्तते। अन्वय:-अनन्ने सुप्युपपदेऽदो धातोर्विट् । अर्थ:-अन्नवर्जित सुबन्ते उपपदेऽद्-धातो: परो विट् प्रत्ययो भवति। उदा०-आममत्तीति आमात् । सस्यमत्तीति सस्यात्।
आर्यभाषा-अर्थ-(अनन्ने) अन्न शब्द को छोड़कर (सुपि) कोई सुबन्त उपपद होने पर (अद:) अद् (धातो:) धातु से परे (विट्) विट् प्रत्यय होता है।
उदा०-आममत्तीति आमात् । कच्चे पदार्थ खानेवाला। सस्यमत्तीति सस्यात् । खेती को खानेवाला हरिण आदि।
सिद्धि-आमात । यहां 'आम' सुबन्त उपपद होने पर 'अद भक्षणे' (अदा०प०) धातु से इस सूत्र से 'विट्' प्रत्यय है। वरपृक्तस्य' (६।१।६५) से 'विट्' के वि का लोप हो जाता है। वाऽवसाने (८।४।५५) से 'अद्' के द् को चर् त् होता है। ऐसे ही-सस्य उपपद होने पर-सस्यात् । विट्
(३) क्रव्ये च।६६। प०वि०-क्रव्ये ७१ च अव्ययपदम् । अनु०-सुपि, विट्, अद इति चानुवर्तते।
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