Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् ६ ऋचायें 'धाय्या' नामक सामिधेनी कहाती हैं जिन्हें पुष्पचिह्न के द्वारा दर्शाया गया है। इन ऋचाओं से यज्ञ में समिधाओं का आधान किया जाता है इसलिये इन्हें धाय्या कहा जाता है। धीयते यया समिदिति-धाय्या। निपातनम् (ण्यत्)
(७) क्रतौ कुण्डपाय्यसंचाय्यौ।१३०। प०वि०-क्रतौ ७१ कुण्डपाय्य-संचाय्यौ १।२।
स०-कुण्डपाय्यश्च संचाय्यश्च तौ-कुण्डपाय्यसंचाय्यौ (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
अनु०-ण्यत् इत्यनुवर्तते। अर्थ:-क्रतावर्थे कुण्डपाय्य-संचाय्यौ शब्दौ ण्यत्-प्रत्ययान्तौ निपात्येते।
उदा०-कुण्डेन पीयते यस्मिन् सोम इति कुण्डपाय्य: क्रतुः (यज्ञ:)। संचीयते यस्मिन् सोम इति संचाय्य: क्रतुः ।
___ आर्यभाषा-अर्थ- (क्रतौ) यज्ञ अर्थ में (कुण्डपाय्यसंचाय्यौ) कुण्डपाय्य और संचाय्य शब्द (ण्यत्) ण्यत्-प्रत्ययान्त निपातित हैं।
उदा०-कुण्डेन पीयते यस्मिन् सोम इति कुण्डपाय्य: क्रतुः (यज्ञ:)। जिस सोमयाग में कुण्ड से सोमपान किया जाता है, उसे कुण्डपाय्य' कहते हैं। संचीयते यस्मिन् सोम इति संचाय्य: क्रतुः । जिस सोमयाग में सोम का संचय किया जाता है उसे संचाय्य' कहते हैं।
सिद्धि-(१) कुण्डपाय्य: । कुण्ड+टा+पा+ण्यत् । कुण्ड+पा+युक्+य । कुण्डपाय्य+सु। कुण्डपाय्यः ।
यहां तृतीयान्त कुण्ड उपपद होने पर 'पा पाने (भ्वा०प०) धातु से इस सूत्र से 'ण्यत्' प्रत्यय है और निपातन से युक्' आगम होता है।
(२) संचाय्यः। यहां सम्-पूर्वक चिञ् चयने (स्वा०3०) धातु से इस सूत्र से 'ण्यत्' प्रत्यय है। अचो गिति' (७।२।११५) से वृद्धि और आय्-आदेश निपातित है। यहां दोनों स्थानों पर अचो यत् (३।१।९७) से 'यत्' प्रत्यय था। निपातनम् (ण्यत्)
(८) अग्नौ परिचाय्योपचाय्यसमूह्याः।१३१। प०वि०-अग्नौ ७१ परिचाय्य-उपचाय्य-समूह्या: १।३ ।
स०-परिचाय्यश्च उपचाय्यश्च समूह्यश्च ते-परिचाय्य-उपचाय्यसमूह्याः (इतरेतरयोगद्वन्द्व:)।
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