Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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तृतीयाध्यायस्य प्रथमः पादः उदा०-(ग्रह) ग्राह: । पकड़नेवाला जलचर (मगरमच्छ)। ग्रहः । नक्षत्र । नौ ग्रह।
सिद्धि-ग्राहः, ग्रहः। ग्रह उपादाने (क्रयाउ०) धातु से इस सूत्र से जलचर (मगरमच्छ) अर्थ में ण-प्रत्यय होता है-ग्राहः। पूर्वोक्त ग्रह धातु से नक्षत्र अर्थ में नन्द्रिग्रहिपचादिभ्यः' (३।१।१३४) से नक्षत्र अर्थ में अच्-प्रत्यय होता है-ग्रहः।
___ विशेष-(१) नवग्रह-सोम, मङ्गल, बुध, शुक्र, शनि, रवि, राहु, केतु ये नौ ग्रह हैं।
(२) व्यवस्थित विभाषा-यह व्यवस्थित विभाषा है। इससे जलचर अर्थ में 'ण' प्रत्यय और नक्षत्र अर्थ में 'अच्' प्रत्यय होता है। क:
(१) गेहे कः।१४४। प०वि०-गेहे ७१ कः ११ अनु०-ग्रह इत्यनुवर्तते। अन्वय:-ग्रहो धातो: को गेहे। अर्थ:-ग्रहो धातो: पर: क: प्रत्ययो भवति, गेहे कर्तरि।
उदा०-(गह्) गृह्णातीति गृहं वेश्म । तत्रावस्थानात्-ग्रह्णन्तीति गृहा दारा इत्यर्थः।
___ आर्यभाषा-अर्थ-(ग्रह:) ग्रह (धातो:) धातु से परे (क:) क-प्रत्यय होता है (गेहे) यदि उस ग्रह धातु का कर्ता गेह-घर हो।
उदा०-(ग्रह) ग्रह्णातीति ग्रहम् । जो व्यक्ति को ग्रहण करता है-पकड़ लेता है उसे गृहम्' कहते हैं। गेह=घर में रहने से दारा भी 'गृहम्' कहाती हैं। ये भी व्यक्ति को पकड़ लेती हैं, जाने नहीं देती।
सिद्धि-गृहम् । ग्रह+क। गृ अह+अ । गृह+अ। गृह+सु । गृहम्। 'ग्रह उपादाने' (क्रया०प०) धातु से इस सूत्र से 'क' प्रत्यय है। 'अहिज्यावयि०' (६।१११६) से 'ग्रह' को सम्प्रसारण (ऋ), 'सम्प्रसारणाच्च' (६।१।१०४) से 'अ' को पूर्वरूप होता है। वुन्
(१) शिल्पिनि वुन्।१४५। प०वि०-शिल्पिनि ७१ ष्वुन् १।१ । स०-शिल्पमस्यास्तीति शिल्पी, तस्मिन्-शिल्पिनि (तद्धितवृत्तिः)। अनु०-ग्रह इत्यनुवर्तते।
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