Book Title: Paniniya Ashtadhyayi Pravachanam Part 02
Author(s): Sudarshanacharya
Publisher: Bramharshi Swami Virjanand Arsh Dharmarth Nyas Zajjar
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पाणिनीय-अष्टाध्यायी-प्रवचनम् (स्कुम्भु) स्कुभ्नाति, स्कुभ्नोति च । वह धारण करता है। (स्कुञ) स्कुनाति, स्कुनोति च। वह कूदता है।
सिद्धि-(१) स्तभ्नाति । स्तम्भु स्तम्भे' (सौत्रधातु) से सार्वधातुक तिप्' प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से 'श्ना' प्रत्यय होता है। सार्वधातुकामपित्' (१।२।४) से 'श्ना' प्रत्यय के 'डित्' होने से 'अनिदितां हल उपधाया: विडति' (६।४।२४) से अनुनासिक का लोप हो जाता है।
(२) स्तभ्नोति। यहां पूर्वोक्त धातु से पूर्ववत् अनु' प्रत्यय है।
(३) 'स्तुम्भु निष्कोषणे' (सौत्रधातु)। स्कम्भु स्तम्भे' (सौत्रधातु)। स्कुम्भु धारणे' (सौत्रधातु)। स्कुञ आप्रवणे' (कूदना} (क्रया०उ०) धातु से शेष पद सिद्ध करें।
विशेष-यहां सौत्र धातुओं के लिखे अर्थ 'माधवीयधातुवृत्ति' पर आश्रित हैं। शानच
(१६) हलः श्नः शानज्झौ ।८३। प०वि०-हल: ५।१ श्न: ६।१ शानच् ११ हौ ७१ । अनु०-सार्वधातुके, कर्तरि इति चानुवर्तते।। अन्वय:-हलो धातोः श्न: शानच् कर्तरि सार्वधातुके हौ।
अर्थ:-हलन्ताद् धातो: परस्य श्ना-प्रत्ययस्य स्थाने शानच्-आदेशो भवति, कर्तृवाचिनि सार्वधातुके हि-प्रत्यये परत:।
उदा०-(मुष्) त्वं मुषाण । (पुष्) त्वं पुषाण ।
आर्यभाषा-अर्थ-(हल:) हल् जिसके अन्त में है उस (धातो:) धातु से परे (श्न:) श्ना प्रत्यय के स्थान में (शानच्) शानच्-आदेश होता है (कतीरे) कर्तृवाची (सार्वधातुके) सार्वधातुक (हौ) हि प्रत्यय परे होने पर।
उदा०- (मुष्) त्वं मुषाण । तू चोरी कर। (पुष्) त्वं पुषाण । तू पुष्ट हो।
सिद्धि-(१) मुषाण । मुष्+लोट् । मुष्+श्ना+तिप्। मुष्+शानच्+हि । मुष्+आन+० । मुषाण।
यहां 'मुष् स्तेये' (क्रयादि०प०) धातु से सार्वधातुक सिप्' प्रत्यय परे होने पर इस सूत्र से श्ना' प्रत्यय के स्थान में शानच् आदेश है। सेॉपिच्च (३।४।८७) से 'सिप' के स्थान में 'हि' आदेश होता है। अतो हे:' (६।४।१२) से हि' प्रत्यय का लुक् हो जाता है। अट्कुप्वानुम्व्यवायेऽपि' (८।२।४) से 'शानच्’ के न् को ण् होता है।
(२) पुषाण । पुष् पुष्टौ (क्रयादि०प०) पूर्ववत् ।
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