Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

View full book text
Previous | Next

Page 13
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/ 11 धर्मशास्त्र अपने इस व्यापक अर्थ में निरपेक्ष शुभ या परम साध्य के विचार को अपने में समाविष्ट कर लेता है। धर्मशास्त्र हमें यह बताता है कि समग्र इंद्रियानुभाविक जगत् की प्रक्रिया इसी निरपेक्ष शुभ की सिद्धि के लिए एक साथ कार्य कर रही है। उस साध्य या शुभ से अनिवार्य रूप से जोड़ने वाला तत्त्व नहीं है। प्लेटो के विचारों में नीतिशास्त्र और धर्मशास्त्र एक दूसरे से पूरी तरह घुले मिले थे, किंतु नैतिक चिंतन के विकास की प्रक्रिया के फलस्वरूप उनका अंतर धीरे-धीरे स्पष्ट होता गया। यद्यपि इस अंतर का यह अर्थ भी नहीं है कि दोनों एक दूसरे से पूरी तरह पृथक् हैं, वरन् इसके विपरीत तथ्य तो यह है कि विश्व को किसी परम लक्ष्य (उद्देश्य) या शुभ से युक्त मानने वाली प्रत्येक दार्शनिक विचारधारा में मानवीय शुभ को उस निरपेक्ष शुभ (विश्व-शुभ) से अभिन्न या उसके अंतर्गत माना गया है अथवा अपने स्रोत या स्वरूप की दृष्टि से उसके सन्निकट बताया गया है। नीतिशास्त्र का राजनीतिशास्त्र से आंशिक अंतर मानवीय शुभ या कल्याण की विवेचना की दृष्टि से नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र से कोई स्पष्ट अंतर नहीं किया गया है। क्योंकि राजनीतिशास्त्र भी राज्य के सदस्य के रूप में मनुष्य के कल्याण या मानवीय शुभ से सम्बंधित है। वस्तुतः कुछ आधुनिक लेखकों ने नीतिशास्त्र को इतने व्यापक अर्थ में ग्रहण किया है कि उसमें राजनीतिशास्त्र के भी एक भाग का समावेश हो जाता है। जहां एक ओर राजनीतिक संस्थानों के शुभत्व और अशुभत्व की कसौटी का निश्चय करना नीतिशास्त्र का विषय है, तो वहीं दूसरी ओर राज्य के चरम साध्य या परमशुभ का विचार भी मनुष्य के कल्याण या मानवीय शुभ के उस प्रत्यय के अंतर्गत ही हो जाता है, जो कि वस्तुतः नीतिशास्त्र का विषय है। यद्यपि अपने संकुचित अर्थ की दृष्टि से नीतिशास्त्र का तात्पर्य वैयक्तिक नीतिशास्त्र से है। वैयक्तिक नीतिशास्त्र व्यक्ति के विवेकयुक्त आचरण से उपलब्ध उसके निजी कल्याण या शुभ से सम्बंधित है। आगे की जाने वाली नीतिशास्त्र की इस ऐतिहासिक विवेचना में नीति शब्द का प्रयोग इसी दूसरे अर्थ में किया गया है, यद्यपि प्रस्तुत विवेचना में नीतिशास्त्र और राजनीतिशास्त्र एवं उनके पारस्परिक सम्बंधों के बीच कठोर विभाजक रेखा खींचने का प्रयत्न नहीं किया गया है, क्योंकि अनेक विवेच्य विचारधाराओं में इन्हें एक दूसरे के अत्यंत निकट और आपस में घनिष्ट रूप से सम्बंधित

Loading...

Page Navigation
1 ... 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 ... 320