Book Title: Nitishastra Ke Iitihas Ki Ruprekha
Author(s): Henri Sizvik
Publisher: Prachya Vidyapeeth

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Page 12
________________ नीतिशास्त्र के इतिहास की रूपरेखा/10 अध्याय 1 नीतिशास्त्र की विषय वस्तु का सामान्य विवेचन नीतिशास्त्र की सर्वमान्य परिभाषा दे पाना कठिन है। क्योंकि उसके स्वरूप एवं (ज्ञान की अन्य शाखाओं से उसके) सम्बंधों को विभिन्न दार्शनिकों ने अलगअलग ढंग से समझा है। परिणामस्वरूप प्रायः शिक्षित व्यक्ति भी इस सम्बंध में द्विविधा की स्थिति में रहते हैं। अतः यही उचित होगा कि सबसे पहले हम इस परिचयात्मक अध्याय में क्रमशः उन विभिन्न दृष्टिकोणों का विवेचन करें, जिन्हें मानवबुद्धि ने नैतिक खोजबीन का विषय माना है। इसके साथ ही यह भी स्पष्ट कर लें कि नीतिशास्त्र का धर्मशास्त्र, राजनीतिशास्त्र एवं मनोविज्ञान से क्या सम्बंध है। तत्पश्चात् इन विभिन्न तथ्यों के प्रकाश में नीतिशास्त्र के अलग-अलग विभागों का वर्गीकरण करें और यथासम्भव एक तटस्थ एवं व्यापक निष्कर्ष प्रस्तुत करने का प्रयत्न करें। नीतिशास्त्र मानव के परम शुभ के अध्ययन के रूप में नीतिशास्त्र के लिए प्रयुक्त अंग्रेजी शब्द 'इथिक्स' का व्युत्पत्तिपरक अर्थ (घात्वर्थ) उसके वास्तविक अर्थ को स्पष्ट करने की दृष्टि से किसी सीमा तक भ्रांतिजनक है, क्योंकि इथिक्स का मूल अर्थ विवेक बुद्धि की अपेक्षा आचरण के अधिक निकट है । अरस्तू की रचनाओं में भी चरित्र की ये विशेषताएं, जिन्हें हम सद्गुण या दुर्गुण कहते हैं, नीतिशास्त्र की विषयवस्तु का मात्र एक भाग है। अरस्तू के अनुसार नीति सम्बंधी गवेषणा का प्राथमिक विषय वह सब है, जो मानवीय परमशुभ से संबंधित है और जिसका बौद्धिक चयन किसी साध्य के साधन के रूप में नहीं, वरन् स्वतः साध्य के रूप में किया जाता है। अरस्तू का उपरोक्त दृष्टिकोण ग्रीक दर्शन में सामान्यतया और उसके परवर्ती युग में व्यापक रूप से स्वीकार किया गया है। धर्मशास्त्र से नीतिशास्त्र का अंतर परमशुभ के साथ मानवीय' विशेषण का प्रयोग नीतिशास्त्र 1. ग्रीक भाषा में इथीस् जिससे इथिक्स शब्द बना है, का मूल अर्थ रीति रिवाज या रूढ़ि है। यह अर्थ इसकी विषयवस्तु को निरपेक्ष शुभ या विश्व-शुभ से अलग करने के उद्देश्य से किया गया है। यदि हम धर्मशास्त्र को विस्तृत अर्थ में ग्रहण करते हैं, तो निरपेक्ष शुभ या विश्व-शुभ (विश्व कल्याण) धर्मशास्त्र की विवेचना का विषय है।

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