________________
( २५ ) महानन्दकर शस्तपरम भवतः प्रभो। सुनाम मन्त्रजापं वा रचयन्ति यतीश्वरः ॥३३॥ विलोकयन्ति रभसात् तवानन सरोरुहम् । प्रसाद संगत हन्त भव्यतजा. समन्ततः ॥३४॥ सनातन हतातङ्क भवन्त जनता हितम् । जितमार मद देव वन्दे दमरमाततम् ।।३।। श्री कोतिराजाभिघ साधुनाऽधुना सहब्धया भो जपमालयाऽनया। गजाडूदेव जपताहता जना, वशीभवेद्व शिवकामिनी यथा ॥३६।। वर्षे रसाष्टाम्बुधिसोमरूपे ( १४८६ ) चित्राक्षमाला स्तवन प्रणतः । ऐन्द्रया नगर्यामजितो जिनेन्द्रः, करोतु कल्याण परम्परा व ॥३६।।
* इति श्री अजितनाथ जपमाला चित्रस्तोत्रम् । सव० १४८६ वर्षे
(अभय जैन ग्रथालय बीकानेर सं० ६६२७ पत्र १.)
वि० वि० जैनस्तोत्र सदोह प्रथम भाग में प्रकाशित सूची के अनुसार सैनस्तोत्र सम्मुचय मे कीत्ति रत्नसूरि रचित्र गिरनार चैत्य परिपाटी स्तवन और करहेटक पार्व जिन स्तवन प्रकाशित हो चुके है।