________________
११६
]
सतम सर्ग
[ नेमिनागमहाकाव्यम्
राजा ने वन्दियो द्वारा इस प्रकार गायी गई अपनी मोतियो पे समान निर्मल कीत्ति को मुना, जो फानों के लिए अमृत के मगान ( सुराद ) थी ॥३२॥
तव राजा ने याचको फो इच्छा को धनगशि से पूरा कर दिया और इन्द्र, यम, वरुण तथा कुवेर की ( चारो) दिशाओ को यशराशि से भर दिया ॥३३॥
राजा ने, याचको के मनोरथो को धन से पूरा करते हुए, बारह दिन तक चलने वाला पुत्र के जन्म का महोत्सव किया ॥३४॥
राजा ने श्रेष्ठ यादवो को अपने घर बुलाकर और उन्हें यथायोग्य भोजन कराके उनका गौरव-पूर्वक सम्मान किया ॥३॥
क्योकि माता ने जगत्प्रभु के गर्भ मे आने पर, स्वप्न में अशुभ रत्नो से यक्त चक्र की देदीप्यमान नेमि देखी थी, अत. माता-पिता ने स्वप्न के अनुसार अपश्चिम आदि की भांति प्रभु का नाम अरिष्टनेमि रखा । ३६-३७॥
विभिन्न देवताओ की घात्रियो रूपी माताओ द्वारा दुलारा जाता हुआ यदुकुल रूपी कमल का वह सूर्य चन्द्रशाला में इस प्रकार बढने लगा जैने मालियो द्वारा पाला गया कल्पवृक्ष जल भरे वन मे ॥३८॥
-
-
-
-