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ससम सर्ग
[ नेमिनाथमहाकाव्यम् ।।
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उन्होंने तत्काल राजा के सब यादेशो की पूर्ति की। राजाओ के कार्य आदेश से सिद्ध होते हैं, जैसे देवताओ के इच्छा से ॥११॥
__उस समय सूर्यपुर तोरणों पर फहराती हुई ध्वजाओ मे ऐमा सुन्दर लग रहा था मानों प्रभु के पुण्यो के प्रभाव से (पृथ्वी पर) गिरा स्वर्ग का टुकडा हो ॥१२॥
विविध सजावटो से भूपित राजा का सभागृह ऐसे शोभित हुमा मानो प्रभु के जन्मोत्सव को देखने के लिये स्वर्गरूपी विमान माया हो ॥१३॥ ।
सुन्दर स्त्रियो द्वारा गाये गये मधुर धवलो और मगलो के कारण कोई दूसरा शब्द, कानो मे पड़ा हुआ भी, सुनाई नहीं देता था ॥१४॥
तब अपने लिये धन चाहने वाले अनेक याचको और राजाओ से राजमार्ग ऐसे भर गया जैसे पक्षियो से फलदार वृक्ष ॥१५॥
__ उस समय मयूरो के नृत्य का हेतु तथा बादल की गर्जना को मात करने वाला वाद्यो का अतीव गम्भीर शब्द दिशाओ मे फैल गया ॥१६॥
तत्पश्चात् राजलक्ष्मी से युक्त दशाहं देश के अधिपति समुद्र-विजय जो दूसरे इन्द्र के समान थे, सिंहासन पर विराजमान हुए। उनके शरीर पर कु कुम, काफूर तथा हरिचन्दन का लेप लगा हुआ था, होठ उत्तम सुगन्धित पान से लाल थे । वे हस के पखो की छवि के समान स्वच्छ तथा सुन्दर चीनी रेशमी वस्त्र पहने हुए थे तथा हार, अर्घहार, वाजूवन्द आदि प्रमुख भूषणो से भूपित थे । उनका सिर, आकार मे पूर्ण चन्द्र विम्ब के समान छत्र से शोभित था। महिलाएं देवताओ को मोहने वाली चवरियो से उन्हे हवा कर रही थीं। मगलपाठ करने में निपुण व्यक्ति पग-पग पर उनकी स्तुति कर रहे थे और समस्त मन्त्री, सामन्त तथा पुरोहित उनके साथ थे ॥१७-२१॥
तत्पश्चात् (अर्थात् सिंहासन पर बैठकर) उसने सेठो, राजाओ तथा प्रधान पुरुषों द्वारा किए गये प्रणाम को आदरपूर्वक स्वीकार किया ॥२२॥