Book Title: Neminath Mahakavyam
Author(s): Kirtiratnasuri, Satyavrat
Publisher: Agarchand Nahta

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Page 208
________________ १३४ ] दशम सर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् एक अन्य स्त्री विशाल थाल मे परसे गये उस भोजन को छोडकर जो देवताओ को भी दुर्लभ है, द्वार की ओर चल पड़ी। सचमुच स्त्रियों की दृष्टि चंचल होती है ॥२२॥ कोई विशाल गाल पर कस्तूरी और कु कूम से पत्रवल्ली की रचना करते हुए प्रमाधिका के हाथो को हटा कर अचानक गवाक्ष मे भाग गयी ॥२३॥ तब खिडकी में बैठी कामिनियो के मुखो को देख कर नीचे वरती पर खडे लोगो को यह आशका हुई कि क्या आज आकाश मे हजारो चांद .. निकल आए हैं ? ॥२४॥ तत्पश्चात् प्रभु, जिनकी देवागनाए प्रशसा कर रही थी और मनुष्य एव देवता सेवा कर रहे थे तथा जिनमे छत्र के द्वारा गर्मी दूर कर दी गयी थी, भोज के घर के पास पहुचे ॥२५॥ उस समय सखियो ने राजीमती को कहा-मखि ! देख, देख । देवागनाओ के लिये भी दुर्लभ यह तेग घर नेमिनाथ तेरे भाग्य से खिंच कर आया है ॥२६॥ ये यादव-नृपतियो को स्त्रियां आनन्द के कारण अपने कठोर तथा पुष्ट स्तनो से आपस मे टकराती हुई गीत गा रही हैं। ये मगलपाठक जयजयकार से कोलाहल कर रहे हैं। और समूची दिशाओ को बहरी करता हुआ यह वाद्यो का शब्द सुनाई पड रहा है ॥२७॥ तव जगत् के एकमात्र बन्यु नेमिप्रभु ने, वाडे की कारा मे पडे, हिमपीडितो के समान कांपते हुए तथा वन्दी डाकूओं कीतरह त्रस्त आंखो वाले पशुओ को देखकर सूत को कहा ॥२८॥ हे वाक्पटु सारथि । वता, इन वेचारो ने पूज्य पिता अथवा वलराम का, भोज अथवा कृष्ण का क्या अपराव दिया है, जो इन्हे यहाँ ऐसे वन्द किया गया है ।।२।।

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