Book Title: Neminath Mahakavyam
Author(s): Kirtiratnasuri, Satyavrat
Publisher: Agarchand Nahta

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Page 222
________________ 1 द्वादश सर्ग तब भगवान् चांदी, सोने तथा मणियो के वृक्षों के मध्य स्थित, देवताओ द्वारा निर्मित सिंहासन पर बैठकर ऐसे शोभित हुए जैसे सुमेरु पर्वत के शिखर पर सटा हुआ नया काला बादल || || तत्पश्चात् यह जानकर कि भगवान् को उत्तम केवल ज्ञान प्राप्त हो गया है, हप के सागर यदुपति कृष्ण उनकी वन्दना करने के लिये नागरिको के माथ तुरन्त चल पडे । वुद्धिमान आदमी धार्मिक काम मे देर नहीं करता ||२|| प्रेम से परिपूर्ण मन वाले नागरिको ने मार्ग मे जाते हुए, नगर, उद्यान आदि देखने की इच्छुक अपनी प्रियतमा को हाथ से सकेत करके यह वचन कहा ॥३॥ हे सुन्दरी । नाना प्रकार के वृक्षो तथा गहन लताओ के कुंजो से युक्त, फलो से लदे हुए, खुशबूदार पुष्पो से मन को हरने वाले तथा अनेक पक्षियों द्वारा सेवित इस पवित्र वन को देख ॥४॥ प्रिये । यह आम का वृक्ष मदमस्त भवरियो एव कोयलो के शब्द से तथा वायु से हिलते हुए पत्तो रूपी हाथो के सकेत से भी, फल चाहने वाले व्यक्ति को बुलाता हुआ-सा दिखाई देना है ||५|| हे विशालनयनी । ऊपर मण्डराते भोरो की मण्डली से अपनी सुगन्ध की महिमा को प्रकट करने वाले इस केवडे के वृक्ष को देखो, जो हिलते पत्तो से मानो अन्य पेडो को साफ नीचा दिखा रहा है ॥६॥ प्रिये ! ये शीतल सरोवर दूसरो की भलाई के लिए सदा प्रचुर निर्मल जल धारण करते हुए भी मन्दबुद्धि (जडाशय - जलाशय) कहलाते हैं । सचमुच पण पुण्यो से मिलता है ||७||

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