________________
१५० ]
द्वादश सग
[ नेमिनाथमहाकाव्यम्
मार्ग में अपनी प्रियाओ वो नई-नई उत्तम वस्तुएँ दिखाते हुए ये नागरिक, परिजनो मे शोभित कृष्ण के साथ, झट परमेश्वर की सभा में पहुंच गये ॥१६॥
तब वहां समस्त पशुओ को विरोध से मुक्त देवकर चकित हुए मानन्दशील श्रीकृष्ण वाहन को छोडकर अपने परिजनो के साथ सभा मे प्रविष्ट हुए ॥१७॥
____जिनेश्वर के प्रति अपूर्व भक्ति प्रदर्शित करते हुए देवताओ के द्वारा, सभा के आंगन मे घुटनो की ऊँचाई तक बरसाए गए नाना रगो के फूलो की प्रशसा करते हुए, देवताओ की दुन्दुभियो के ऊचे तथा मधुर स्वर को प्रसन्नता से सुनते हुए, तीर्थंकर के नाम तथा कर्म से उत्पन्न जिनेन्द्र की उत्कृष्ट समृद्धि का वार-चार वर्णन करते हुए उन्होंने (श्रीकृष्ण ने) वहा प्रभु के सिर पर चारण किए गये चन्द्रमा के समान सुन्दर तीन छत्र देखे ! वे छत्र मणियो तथा मोतियो की राशि के समान चमकीले थे और जिनेश्वर के तीनो लोको के आधिपत्य को सूचित कर रहे थे ॥१८-२०॥
तत्पश्चात् श्रीकृष्ण ने हिलती हुई दो चवरियो के मध्य वैठे जगत्प्रभु मा मुख देखा, जो श्वेत राजहसो के जोड़े के बीच खिले सुन्दर कमल के समान था ॥२१॥
प्रभु की अद्भुत रूप-सम्पदा को देखकर उस बुद्धिमान को, तीनो लोको के पवित्र पदार्थों को बार-बार मन मे मादरपूर्वक याद करने पर भी (उमका) कोई उपमान नहीं मिला ॥२२॥
सूर्य के समान तेजस्वी, चन्द्रविम्ब से भी अधिक मौम्य तथा नये मेघ के ममान सुन्दर माकृति वाले ईश्वर को देखकर मुसरि मन मे बहुत प्रसन्न हए ॥२३॥
तब श्रीकृष्ण ने पहले विधिपूर्वक उनकी परिक्रमा की, फिर अपने जन्म और जीवन को मात्रक मानते हुए विनय और भक्ति से झुककर प्रभु के धरपकमलो मे प्रणाम किया ॥२४॥