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नेमिनाथमहाकाव्यम् ]
दसम सर्ग
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दाहिनी ओर स्थित सूत ने उत्तर दिया कि इन्होने किसी का भी अपराध नही किया है पर इनसे यादवो का ठाटदार भोजन बनेगा ॥३०॥
___ तब प्रभु ने कहा-हे सारथि ! सुनो। जो इसे भोजन का गौरव मानते हैं, उन्हे नरक मे ही महत्त्व मिलता है, उन्हे स्वर्ग नहीं बुलाता अर्थात उन्हे स्वर्ग का सुख नहीं मिलता ॥३१॥
और फिर विश्व के एक मात्र बन्यु ( नेमिनाथ ) की परम कृपा से उन सब पशुओ को शीघ्र ही बन्धन से मुक्ति मिल गयी । उन जैसो की महिमा अचिन्तनीय है ॥३२॥
तव सूत ने स्वामी की आज्ञा से रथ को विवाहगृह से वापिस मोड लिया जैसे- योगी ज्ञान की प्रवल शक्ति से अपने मन को बुरे विचार से तुरन्त हटा लेता है ॥३३॥
नेमि को वापिस जाते देखकर उनके मारे सम्बन्धी, घबराहट से यह कहते हुए कि 'यह क्या हो गया है। इस प्रकार उनके पीछे दौडे जैसे डरे हुए हरिण यूथ के नेता के पीछे भागते हैं ॥३४॥
नेमिनाथ ने उन्हे अमृत और चन्दन के समान शीतल वाणी से इस प्रकार प्रबोध दिया जैसे रात्रि के समय चन्द्रमा अपनी किरणो से कुमुदवनो को विकसित करता है ॥३॥ - आप सुनें, धर्म और पाप निश्चय ही सुख और दुख के प्रख्यात कारण हैं और उनके (धर्म और पाप के) कारण और करुणा हिंसा प्रसिद्ध हैं। ऐसा होने पर बुद्धिमान् को क्या करना चाहिए ? ॥३६॥
मत. सुख चाहने वाले व्यक्ति को सदा दया करनी चाहिये । वह सब प्राणियो की रक्षा से होती है। उसके (जीवरक्षा के ) इच्छुक बुद्धिमान को मब प्रकार की आसक्ति छोड़ देनी चाहिए ॥३७॥