Book Title: Neminath Mahakavyam
Author(s): Kirtiratnasuri, Satyavrat
Publisher: Agarchand Nahta

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Page 216
________________ १४२ ] एकादश सगं [ नेमिनाथमहाकाव्यम् होनी चाहिये क्योकि पहले भी बलवानो के आग्रह पर बहुत-से राजाओ ने पृथ्वी छोडी है ॥३६॥ हे चरित्र । अथवा मेरी दुद्धपं एव प्रचण्ड सेना के दिखने पर पलायन नामक विद्या पहले ही तुम्हारे वश मे है (अर्थात् मेरी सेना को देखते ही तुम भाग जामोगे) ॥३७॥ हे व्रतराज | यदि अब तुम नेमि रूपी नगर को नहीं छोडोगे, जो . निश्चित ही तुम नही वचोगे । मैं तुम्हारे चरित्र को जानता हूं ॥३॥ सयमराज | मैंने तुम्हारे सामने अन्ततः हितकारी बात स्पष्ट कह दी है । अब मापको जो भाए वह करो ॥३॥ कुमत के इस प्रकार वेलगाम बोलने पर, चरित्रावीश की आंख का सकेत पाकर शुद्धविवेक नामक मन्त्री ने मुस्करा कर साफ-साफ कहा ॥४०॥ दूत ! तुमने यह सुन्दर कहा । तुम वाग्मी हो, बुद्धिमान हो ! ससार मे आपके अतिरिक्त कौन दूसरा ऐसी बात कहना जानता है ॥४१॥ किन्तु हमने शत्रुओ को घराशायी करके अपने रहने के लिये इस हृदय-नगर पर बलपूर्वक अधिकार किया है । शत्रु मोह के डर से हम इसे कैसे छोड़ दें ॥४२॥ पहले भी सयमराज ने अनेक बार तुम्हारे स्वामी के दुर्गों पर जबरदस्ती कब्जा किया था। अब वह उन्हे अपने सुन्दर नगर समझ कर उनका हर प्रकार से आनन्द ले रहा है ।।४३॥ यदि तुम्हारे स्वामी मे शक्ति है, तो वह भी उन पर अधिकार कर ले । किन्तु वह धोखेबाज़ तेज़ ज़बान से (ही) लोगो को डराता है ॥४४॥ मित्र ! जो तुम्हारे इस धूर्त स्वामी के लक्षण को जानता है, वह उसे अनुयायियो सहित तत्काल आसानी से नष्ट कर देता है ।।४५।। दूत ! आप अपने उस स्वामी को दुराग्रह से रोको अन्यथा वह निश्चय

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