Book Title: Neminath Mahakavyam
Author(s): Kirtiratnasuri, Satyavrat
Publisher: Agarchand Nahta

View full book text
Previous | Next

Page 212
________________ एकादश सर्ग इसके पश्चात् प्रभु द्वारा छोडी गयी भोजराज की पुत्री बेचारी राजीमती, जिसका शरीर ( दुख से ) शिथिल हो गया था, पृथ्वी पर गिर कर आँसू बहाती हुई विलाप करने लगी ||१| " हे विश्ववन्धु स्वामी । मेरे प्रति तुम्हारा यह निष्ठुर व्यवहार क्यो ? पक्षी भी अपनी सहचरियो को छोड़ कर जीवित नही रहते ॥२॥ हे बुद्धिमान् | आपने मुझे कभी प्रत्यक्ष देखने की भी कृपा नही की, तो मुझ अबला पर आपका इतना क्रोध क्यों ? || ३ || नाथ ! यदि तुम अपराध के विना ही मुझे छोड़ कर, पहले अनेक पुरुषो द्वारा भोगी गयी दीक्षा रूपी नारी का स्वीकार करते हो, यह तुम्हारे कुल के लिये उचित नही ||४|| यदि मत्पुरुप भी ऐसा (कुकर्म) करते है, तो यह बात किसे कही जाए ( अर्थात् किमसे शिकायत की जाए ) । अथवा समुद्र को अपनी मर्यादा का उल्लघन करने से कौन रोक सकता है ॥५॥ } नाथ ! यदि आप सब प्राणियों पर दया करते हैं, तो क्या मैं प्राणी नही हूँ ?, जो आपने सज्जनो की करुणा की पात्र मुझ दीना को ऐसे छोड दिया है ||६|| प्यारे प्रभु ! आप ही कल्पवृक्ष की तरह ससार की इच्छाओं को पूरा फरते हैं । मेरी आशा को आपने क्यो नष्ट कर दिया है ? ॥७॥ प्रभु ! मेरा मन चुरा कर वन मे जाना आपके लिये शोभनीय नही है क्योकि बुद्धिमान् परायी चीज लेकर गुफा में नही छिपते ||८||

Loading...

Page Navigation
1 ... 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242 243 244 245