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अष्टम सर्ग
इसके बाद भगवान् पिता के घर मे माता-पिता और बन्धुजनो की इच्छाओं के साथ इस प्रकार वढने लगे जैसे सुमेरु पर्वत पर नया कल्प वृक्ष अपने अभीष्ट दान आदि मुख्य गुणो के साथ बढता है ||१||
प्रियगु लता के समान कान्ति वाला प्रभु का शरीर ऐसे शोभित हुआ मानो वह मरकत मणियो के टुकडो मे निर्मित हो अथवा मंजन के कणो से गठित हो अथवा नये मेघो से याच्छादित हो ||२||
सरोवर के कमल को छोडकर लक्ष्मी ने भगवान् के चरण-कमल का आश्रय लिया । निश्चय ही परिचित वस्तु के सुन्दर होने पर भी मव नयी चीज से प्यार करते हैं ||३||
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अर्गला अत्यधिक कठोरता के कारण और शेषनाग का शरीर विषपूर्ण होने के कारण प्रभु की सीधी सुन्दर भुजाओ की समानता प्राप्त नही कर सके ॥४॥
लोगो की आँखो को आनंन्द देने वाला उत्कृष्ट सौम्य गुण भगवान् के परम पवित्र मुख पर ऐसे व्याप्त हो गया जैसे उज्ज्वल किरणो का समूह चन्द्रमा के पूर्ण मण्डल पर ||५||
शम रूपी अमृतरस की तरंगों से व्यास तथा सलोनेपन रूपी अंजन से अजी पुतलियो वाले प्रभु के दोनो 'नेत्र, जिन्होंने कमल के सौन्दर्य को परास्त कर दिया था, अतीव शोभा पा रहे थे ॥६॥
प्रशसनीय जिनेश्वर नगर वासियो को मोहित करते हुए, समान उम्र वाले यदुकुमारों के साथ, जिनमे कृष्ण प्रमुख थे, शुभ वन और भवन में भो खेलने लगे ||७||