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नेमिनाथमहाकाव्यम् ]
ससम मर्ग
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तव नर्तको ने नृत्य मारम्भ किया, गायकों ने मनोहर गीत, कुलनारियो ने रास और वन्दियो ने विन्दावली ॥२३॥
तुम्हारे प्रताप के दीपक के सामने तीनो लोक उल्लू (के समान) हैं, सूर्य शलभ हैं और सुमेरु पर्वत मात्र वाती ॥२४॥
' आग को पानी वुझा देता है, सूरज को बादल ढक लेता है, परन्तु राजन् ! तुम्हारे तेज को कोई भी कम नही कर सकता ॥२५॥
हे स्वामी । तुम्हारे शत्रुओ की जो स्त्रियां (पहले) महलों में सुखप्रद शय्याओ पर सोती थी तुम्हारे ऋद्ध होने पर (अव) वे पर्वतों की शिलाओ की पटियो पर सोती हैं ॥२६॥
राजन् ! रण रूपी रात्रि में जेब तुम्हारी) चन्द्रहास नामक खड्ग दिखाई देती है, तब तुम्हारे शत्रु अपनी प्रियामओ से बिछुड़ जाते हैं ( अर्थात् मर जाते हैं जैसे चकवे रण के समान रात में चांदनी को देखकर चकवियो से वियुक्त हो जाते हैं ॥२७॥
अनेक प्रदेशो मे बहती हुई तथा भगवान् शकर के सिर पर खेलती हुई गङ्गा के समान तुम्हारी आज्ञा, नाना देशो मे चलकर और राजाओ के सिरो पर खेलकर समुद्र तक फैल गयी है ॥२८॥ . राजन् । तुम्हारे दान से उद्धत तथा गुणो से उत्साहित याचक युद्धभूमि-तुल्य (घर के) आगन मे, और तुम्हारे घलाने से तीव्र तथा धनुष की डोरी से छोडे गये बाण समरागण मे आपकी-विजय को बतलाते हैं ॥२६॥
चन्द्रमा की उज्ज्वल काति भी सूर्य के सामने क्षीण हो जाती है, किन्तु हे नाथ | आपकी कीत्ति कही भी मन्द नही पडी ॥३०॥ - राजन् | आप इस पृथ्वी की रक्षा करते हुए तथा न्यायपूर्ण नीति का विस्तार करते हुए सौ वर्ष तक जीओ ॥३१॥