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नेमिनाथमहाकाव्यम् ]
अष्टम सर्ग
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मीठी मजरियों से प्रमन्न तथा भिनभिनाते भौरो रूपी वन्दियो से सम्मानित कौन-सा गाम का पेड, हरे-भरे मैदानो तथा फूलो से लदे चम्पको के साथ, मन को मोह नहीं लेता था ॥१६॥
फूलो रूपी मोतियो से दिशाओ को भासित करने वाले, चमकते भौरो रूपी मणियो की काति से युक्त तथा पत्तो के कारण लाल उस तिलक वृक्ष ने वनलक्ष्मी के तिलक के सौन्दर्य को धारण किया ( अर्थात् वह वनलक्ष्मी के माथे का तिलक प्रतीत होता था ) ।।१७॥
फूलों तथा फलो से लदी आम्रवृक्षो की पक्ति युवा पक्षियो के मधुर शब्द से पथिक को, उसका उचित आतिथ्य करने के लिये, गौरव पूर्वक बुलासी रही थी ॥१८॥
अमराइयो के घने वन' मे अपनी सहचरी का आलिंगन करने को उत्सुक तोते को देखकर कौन विरही, मार्ग मे अपनी पत्नी को वार-वार याद नहीं करता था ॥१६॥ .. उद्यानो मे विलासी जनो को अपनी प्रियाओ के गले में भुजाएं डाले देखकर कामातुर विरही, प्रेयसियो को याद करते हुए, विकल होकर पृथ्वी पर लोटने लगे ॥२०॥
किसी सुन्दर रमणी ने पति को न पाकर, लताओ के तले कमलो' को हिलाने वाली मलय-समीर को हिम तथा विप से अधिक नहीं माना (अर्थात् उसके लिये मलय-पवन भी वर्फ और जहर के समान पीडादायक थी ॥२१॥
वायु से हिलते वृक्षो वाले उद्यान में रमण करने की इच्छुक दूसरी दयालु नायिका ने, मल्लिका के फूलो को वीनने का यत्न करते हुए विल्कुल नए प्रिय को रोक दिया ॥२२॥
कुम्भ-तुल्य कठोर स्तनो को आनन्द देने वाले प्रियतम के हाथ ने मनोरम एव विस्तृत कु ज में, प्रथम समागम से व्याकुल प्रिया को सरस मौसमी पत्तो से पखा किया ॥२३॥