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अष्टम सर्ग
[ नेमिनाथमहाकाव्यम्
गजगति प्रभु ने धीरे-धीरे बचपन को पार करके और नव यौवन को प्राप्त करके समार की आंखो के लिये अमृत के समान (आनन्ददायक) सुन्दर शरीर विकसित किया (धारण किया) |||
जिनेन्द्र को देखकर विनयावनत जनता ने हृदय में सोचा कि क्या यह नगत का पालन करने के लिये इन्द्र आया है, अथवा शरीर धारण करके कामदेव ? ||
उसका गुण दूसरो की भलाई के लिये-था, निपुणता संसार को वोध देने वाली थी, ऐश्वर्य समस्त योगियो-को अभीष्ट था और सज्जनता लोगो का सन्ताप दूर करने मे समथ थी ॥१०॥
भवसागर से मुक्ति देने वाले उन पूज्य के पास नवयौवन, अनुपम समृद्धि, उत्तम रूप-सौन्दर्य तथा अद्भुत प्रभुत्व था, परन्तु इनसे उनके मन मे कोई विकार पैदा नही हुआ ॥११॥
मसार मे उन्ही के चरण-कमल पूजनीय हैं, जो तरुणावस्था मे भी विकारो से मुक्त रहते हैं । नदी के वेग से आहत होकर कौन-से वृक्ष नंही , गिरते ? विरले देवदारु ही सीधे रहते हैं ।।१२।।।
___ तत्पश्चात् अपनी सम्पदा की राशि को बढा कर (विभिन्न) ऋतुएं', अपने वृक्षो के पुष्पो के उपहार भेंट करती हुई, उस उदयशील पवित्र तीर्थंकर की सेवा मे उपस्थित हुई ॥१३॥
. धीरे-धीरे शिशिर की शोभा को कम करता हुआ, पेडो- को मलयपवन से पल्लवित करता हुआ तथा कोकिलामओ के. शब्द को- फैलाता हुआ ऋतुराज वसन्त वन-भूमि मे अवतरित हुआ ||१४||
नाना प्रकार के पत्तो, फूलो और फलो से भरी तथा मस्त पक्षियो के कर्णप्रिय शब्द से गुजित समूची वनस्थली सहृदयो के हृदयों को आनन्दित करने लगी ॥१॥