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नेमिनाथमहाकाव्यम् ]
नवम सर्ग
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प्रात काल सामन्तो के द्वारा भेंटकिये गये हाथी वहते मदजल से उसके सभामण्डप को गीला करते थे ॥४६॥
वह दीन जनो का सहारा, शरणार्थियो का रक्षक, गुण रूपी रत्नो का कोश और कीति रूपी लतामो का उद्यान था ॥४७॥
वह लक्ष्मी और सरस्वती का खजाना, बल रूपी हाथियो का बन्धनस्तम्भ, नीतिलताओ का मालवाल ( थौला ), और कुल रूपी घरो का खम्मा था ॥४८॥
उम राजा की बिले कमल के ममान आंखो वाली पुत्री राजीमती इन्द्र की कन्या जयन्ती जमी थी॥४६॥
वह शील रूपी रत्न की मजूपा, सौन्दर्यजल की वावडी, सौभाग्य रूपी कन्द की वेल और रूप-सम्पदा की सीमा थी ॥५०॥
___ वह चन्द्रकला के समान निर्मल, कमलनाल के समान कोमलांगी, मेघमाला की भांति काम्य और हरिणी की तरह सुन्दर आँखो वाली थी ॥५१॥
उसके मुख से पराजित होकर चन्द्रमा लघुता ( छोटेपन, हल्केपन) को प्राप्त हो गया है । वायु द्वारा रूई की तरह ऊपर उडाया गया वह आकाश मे (मारा-मारा) फिरता है ॥५२॥
भोली-भाली तथा स्नेह पूर्ण पुतलियो वाले उसके नेत्र, जिसके बीच में भौंरा वैठा है ऐसे नीलकमल की शोभा को मात करते थे ॥५३॥
लावण्यरस से परिपूर्ण उसके कलश-तुल्य स्तन ऐसे प्रतीत होते थे मानो उसके वक्षस्थल को फोड कर काम के दो कन्द निकल आए हो ॥५४॥
उसकी कदली-स्तम्भ के समान कोमल जधाएं ऐसी लगती थी मानो काम के दुद्धर्ष हाथी को बांधने के दो खम्भे हो ॥५५।।