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तृतीय सर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् तब स्वप्नफल के ज्ञाताओ ने प्रमन्न होकर उत्तम आशीर्वादो से राजा का अभिनन्दन किया। क्या कुलीन नीतिवेत्ता कही आचार के मार्ग का उल्लघन करते हैं ॥२७॥
राजा द्वारा विदा किए गये वे श्रेष्ठ ज्योतिपी प्रमन्न होकर अपने घरो को गये । राजा भी सिंहासन से उठकर रानी के पास चला गया ॥२८॥
प्रेमविह्वल राजा ने विद्वान जोतिपियो द्वारा कहा गया स्वप्नो का वह शुभ फल अपनी प्राणप्रिया को एकान्त मे बनाया क्योकि प्रिय वात प्रिय व्यक्ति को कहनी चाहिए | ॥२६॥
उसी दिन से यादवराज की पत्नी ने इस प्रकार गर्भ धारण किया जमे मन्दर पर्वत की गुफा कल्पवृक्ष को और रोहणपर्वत की भूमि रत्नराशि को धारण करती है ॥३०॥
प्रयत्नपूर्वक गर्भ का पोषण करती हुई यादवराज की पत्नी माराम से वैठती है, आराम से सोती है, आराम से रुकती है, आराम से चलती है, और स्वास्थ्यवर्द्धक भोजन करती है ॥३१॥
____ 'यह लज्जा के कारण मुझे अपनी इच्छा नहीं बतलाती' इसलिए कोमल चित्त राजा बहुत आदर के साथ उसकी सखियो से पूछना था कि यह किन-किन वस्तुयो को चाहती है ॥३२॥
रानी का जो दोहद उत्पन्न होता था, वह तत्काल ही पूर्ण हो जाता या। पुण्यशाली लोगो को अभीष्ट मनोरथ कहां पूरा नहीं होता ? ||३३11
जो राजा पहले दुर्जय थे अथवा जो उसके सामने नहीं झुकते थे, भगवान् के गर्भ में आने पर वे भी तुरन्त दशाहराज की सेवा ऐसे करने लगे जैसे श्रादालु शिष्य गुरु की ॥३४॥
___ तव समय पर रानी णिवादेवी से, चमचमाते प्रभामण्डल से विभूपित तपा संतुलित सगो वाला पुत्र उत्पन्न हुआ जैने सुवर्मा समा रूपी जन्म-शय्या से देवराज इन्द्र प्रकट होता है ॥३५॥