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चतुर्थ सर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् इन्होने भी पहले की तरह अपना परिचय देकर मनोहर दुर्दिन पैदा करने वाले मेघ को ऐसे ऊपर फैला दिया जैसे दीपिकाएं ऊपर की ओर कालिमा फैलाती है ॥२०॥
बादल ने पृथ्वी पर एक योजन तक सुगन्धित जल बरमा कर धूलि और गर्मी को इस प्रकार शान्त कर दिया जैसे सूर्य अन्धकार और कोहरे को दूर कर देता है ॥२१॥
तब कुमारियो ने, वायु से हिलाई गयी प्रफुल्लित पुष्पवाटिकाओ की " तरह पाच रग के फूलो की वर्षा की ॥२२॥
उन फूलो ने, गिरकर भी, पृथ्वी को सुगन्धित किया। निश्चय ही पवित्रात्मा व्यक्ति विपत्ति मे भी दूसरो का उपकार करते हैं ॥२३॥
उस समय वहाँ (सूतिगृह मे) फूलो के ऊपर मडराते हुए भौंरे नीले उत्तरीय की शोभा का अनुकरण कर रहे थे ॥२४॥
भौरो ने अपनी गूंज के बहाने प्रभु के गुणो का गान किया और फूलो ने मकरन्द के मिस उन्हे पान दिया ।।२।।
. उन फूलो ने अपनी सुगन्ध से दिशाओ को सुगन्वित कर दिया । ससार मे सज्जनो के गुणो का एकमात्र फल निश्चय ही परोपकार है ॥२६।।
अपने योग्य स्थान पर बैठी हुई उन्होंने अलौकिक शक्ति से फूलो और पानी की वर्षा को रोक कर प्रभु का गुणगान किया ॥२७॥
तत्पश्चात् रुचक पर्वत की पूर्व दिशा से आठ दिक्कुमारियां यादवराज के महल में आयी जैसे पर्वत से नदियां समुद्र में आती हैं ॥२८॥
पहले की भांति उन्होने वाणी से जिनेन्द्र तथा माता की स्तुति की और शीश मुकाकर उन्हे नमस्कार किया। कौन बुद्धिमान् भवसागर से मुक्त . करने वाले कल्याणकारी व्यक्ति की स्तुति और वन्दना नही करता ॥२६॥