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नेमिनाथमहाकाव्य ]
{ १६ दिवसो यया नहि विना दिनेश्वर सुकृत विना न च भवेत्त था सुखम् । तदवश्यमेव विदुषा सुखाथिना सुकृत सदैव फरणीयमादरात् ॥१२॥४४ विघटते स्वजनश्च सुहृज्जनो विघटते च विभवोऽपि च । विघटते नहि फेवलमात्मन सुकृतमत्र परत्र च सचितम् । १२१४७
इस प्रकार कीतिराज ने काव्य मे रमात्मक प्रसङ्गो के द्वारा पात्रो के मनोमावो को वाणी प्रदान की है तथा काव्य-सौन्दर्य को प्रस्फुटित किया है।
चरित्रचित्रण
नेमिनाथ महाकाव्य के सक्षिप्त कयानक मे पात्रों की संख्या भी सीमित है । कथानायक नेमिनाथ के अतिरिक्त उनके पिता समुद्रविजय, माता शिवादेवी, राजीमती, उगमेन, प्रतीकात्मक सम्राट् मोह तथा सयम और दूत कंतव एव मन्त्री ही काव्य के पात्र हैं। परन्तु इन सवको चरित्रगत विशेषताओ का निरूपण करने में कवि को ममान सफलता नहीं मिली है। नेमिनाथ
जिनेश्वर नेमिनाथ काव्य के नायक है। उनका चरित्र पौराणिक परिवेश में प्रस्तुत किया गया है जिससे उनके व्यक्तित्व के कतिपय पक्ष ही निरूपित हो सके है और उसमे कोई नवीनता भी नही है। वे देवोचित विभूति तथा शक्ति से सम्पन्न हैं । उनके धरा पर अवतीर्ण होते ही समुद्रविजय के ममम्त शत्रु निस्तेज हो जाते हैं । दिक्कुमारियां उनका सूतिकर्म करती हैं नथा उनका जन्माभिषेक करने के लिए स्वय सुरपति इन्द्र जिनगृह मे आता है । पाँचजन्य को फूकना तथा शक्ति-परीक्षा मे षोडशकलासम्पन्न श्रीकृष्ण को पराजित करना उनकी दिव्य शक्तिमत्ता के प्रमाण हैं।
नेमिनाथ का समूचा चरित्र विरक्ति के केन्द्र-बिन्दु के चारो ओर घूमता है । वे वीतराग नायक है । यौवन की मादक अवस्था में भी वैषयिक