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नेमिनाथमहाकाव्य ]
[ ३५ ने प्रस्तुत सन्दर्भ को नया रूप दिया है, जो पौराणिक प्रसग की अपेक्षा अधिक सगत है । उनके काव्य मे (११४१-१०) स्वय राजीमती रेवतकपर्वत पर युवा नेमिकुमार को देख कर उनके रूप पर मोहित हो जाती है और उसमे पूर्वराग का उदय होता है। उधर श्रीकृष्ण नेमिकुमार के माता-पिता के अनुरोध पर ही उग्रसेन से विवाह प्रस्ताव करते है। कीतिराज इस परिवर्तन से भी सन्तुष्ट नहीं हुए । उन्हें राजीमती-जैसी सती का साधारण नायिका की भांति नायक को देखकर कामाकुल होना औचित्यपूर्ण प्रतीत नही होता । फलत नेमिनाथमहाकाव्य मे कृष्ण-पत्नियां विविध तर्को तथा प्रलोभनो से नेमि को कामोन्मुख करने की चेष्टा करती हैं । उनके विफल होने पर माता शिवा उन्हें विवाह के लिये प्रेरित करती हैं, जिनके आग्रह को नेमिनाथ, निस्पृह होते हुए भी, अस्वीकार नही कर सके (४४१) । नमि की स्वीकृति से ही उनके विवाह का प्रवन्ध करना निस्सन्देह अविक विचारपूर्ण तथा उनके उदात्त चरित्र की गरिमा के अनुकूल है । इससे राजीमती के शील पर भी ऑच नही आती । कीतिराज ने प्रस्तुत सन्दर्भ के गठन मे अवश्य ही अधिक कौशल का परिचय दिया है।
___ कथानक के गठन पर विचार करते हुए सकेत किया गया है कि नेमिनाथमहाकाव्य की कथावस्तु अयिक विस्तृत नही है, किन्तु कवि की मलकारी वृत्ति ने उसे मजा-मवार कर बारह मर्गों का विस्तार दिया है । नेमिनिर्वाण काव्य में मूल कथा से सम्बन्धित घटनाएं और भी कम हैं । सव मिला कर भी उमका कथानक नेमिनाथकाव्य की अपेक्षा छोटा माना जाएगा । पर वाग्भट ने उसमे एक ओर वस्तु-व्यापार के परम्परागत वर्णन ठूस कर और दूसरी
ओर पुराणवर्णित पूर्वभवावलि, तपश्चर्या, देशना आदि को अनावश्यक महत्त्व देकर उसे पन्द्रह मगों की विशाल काया प्रदान की है । ऐसा करके वे अपने स्रोत तथा महाकाव्य के बाह्य रूप के प्रति भले ही अधिक निष्ठावान् रहे हो, परन्तु सन्तुलन तथा स्वाभाविकता से दूर भटक गये हैं । वीतराग तीर्यकर के जीवन से सम्बन्धित रचना मे, पूरे यह सर्गों मे, कुसुमावचय, जलक्रीडा, चन्द्रोदय, मधुपान आदि के शृगारी वर्णनो की क्या सार्थकता है ? इसी पर