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द्वितीय सर्ग
[ नमिनाथमहाकाव्यम्
तुम्हारा पुत्र ज्ञानवान् विद्वानो मे प्रथम, त्यागी राजायों में शीर्षस्था नीय, वीर योद्धाओ मे अग्रगण्य तथा यशस्वियों में प्रमुख होगा ||२५|| सुडोल कन्धो की शोभा मे युक्त वह अपने यमाधारण पराक्रम ने अन्य सव राजाओ को डरा कर तथा पृथ्वी को बलपूर्वक जीत कर उसे इम प्रकार भोगेगा जैसे साण्ड अपने अनुपम वल से अन्य बैलो को हरा कर तथा गाय को वरवस वश मे करके उसे भोगता है ||२६||
हे कल्याणि । आज हमारा यदुवंश मचमुत्र परम विभूति का पात्र वन गया है क्योकि महान् लोगो का जन्म सम्माननीय, योग्य, उन्नत तथा शुभ कुल मे ही देखा जाता है ॥२७॥
सगतार्थं से युक्त राजा की वाणी उपर्युक्त वातें कहने के पश्चात्, कुछ थक कर, मुख-मण्डल रूपी महल के होठ रूपी किवाड बंद करके जिह्वा रूपी आसन पर सुखपूर्वक विश्राम करने लगी ( अर्थात् शात हो गयी ) ॥२८॥
तव 'तथास्तु' यह कह कर और राजा की अनुमति से अपने भवन मे जाकर प्रसन्न रानी ने, बुरे स्वप्नों के भय के कारण जागते हुए, धर्मक्या यादि कौतुकी से रात विताई ||२६||
इसके बाद रानी ने रात्रि, रूपी स्त्री के द्वारा मोहवश अन्धकार रूपी अंजन से लीपे गये दिक्कुमारियो के मुखो को सूर्य की किरणों के जल से धोते हुए प्रभात को, अपने पुत्र के समान, देखा ( शिशु के मैले अंग भी घोने से स्वच्छ हो जाते हैं ) ||३०||
जिसके आने पर श्रेष्ठ पुरुष नित्य प्रति विलाम शय्याओ से उठ जाते हैं। अतिथियो की सेवाविधि को जानने वाले सचमुच कही भी मौचित्य को नही छोड़ते ||३१||
जिसमे आभाहीन हुई किरणो वाला चन्द्रमा ज्यो ही अस्ताचल की घोटी पर पहुँचा त्यो ही कुमुदिनी का मुख मलिन हो गया ( वह मुरझा गयो ), इससे कुलागनाओ का चरित्र स्पष्ट है ॥ ३२ ॥