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नेमिनाथमहाकाव्यम् ] प्रथम सर्ग
[ ७५ वहां जलरूपी लावण्य से भरी गहरी वतुंलाकार वावढियां कामिनियो की नाभियो के समान सुन्दर लगती थी ।२६।
रग-विरगे पत्थरो मे शोभित उसका गोलाकार परकोटा इस प्रकार सुन्दर लगता था मानो वह पृथ्वी-देवी का कुण्डल हो।३०।
उसके उद्यान मे कामिनियो के समान कोमल लताएं, फूलो से लदी हुई भी, वृक्षो का आलिंगन करती थी, यह याश्चर्य की बात है । ( स्त्रियां रजस्वला होती हुई भी युवको का आलिंगन करती थी ) ।३११
वहाँ दरिद्र लोग कठिनाई से शीतल रात से आकाश छुडवाते थे ( ठण्डी रात कष्टपूर्वक बिताते थे ) और युवक(प्रथम ममागम के समय) वडी कठिनाई से नववधू को अवोवस्त्र खोलने को तैयार करते थे ।३२॥
__ उसके समीप गणिका के समान एक नदी शोभा पाती थी, जिसका जल माप पीते थे तथा जो अपने वेणी-तुल्य जल-प्रवाह से नगरवासियो को मोह लेती थी। (गणिका को विट भोगते हैं और वह अपनी सुन्दर वेणी मे नागर जनो को आकर्षित करती है) ।३३।।
उस नगर के रमणीय महलो का मौन्दर्य तथा परकोटे की शोभा अपूर्व थी। उसे देख कर कौन सिर नही हिलाता ? १३४।
वहाँ के राजा समुद्रविजय का नाम यथार्थ था क्योकि उसने ममुद्र तक समूचे शत्रुओ को जीत लिया था ।३५॥
उसने शत्रुओ की लक्ष्मी के माथ पिता के सिंहासन को ग्रहण किया और उनके (वैरियो के ) पराक्रम के साथ याचको की दरिद्रता को हर लिया ।३६।
बाणो से अन्य राजाओ को डराने वाला, स्त्रियो के लिये दर्शनीय तथा युद्ध मे शत्रुओ को निपुणता को हरने वाला वह, सीगो से बैलो को भीत करने घाले, गायो के लिए दर्शनीय प्रचण्ड साण्ड के समान था 1३७।