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प्रथम सर्ग [ नेमिनाथमहाकाव्यम् वहाँ धनी लोगो के रत्नो से खचित तथा दघिपिण्डो के कारण मफेद भवन हिमालय के शिशुओ (लघु पर्वतो) के समान लगते थे ।२०।
वहां विटो के साथ मैथुन करने से थकी हुई वेश्यायें, जिनके स्तनो से चोली गिर गयी है, सांपिनो की तरह, देखने मात्र से लोगो को विचलित कर देती थी। (मापिने भी सापो के साथ सम्भोग से थक जाती हैं और उनकी केचुली उतर जाती है)।२१।
वहां युवको के गाढालिंगनो से टूटते हारो वाली नारियां, ऊपर गिरते हुए मोती रूपी चावलो.से मानो काम का अभिनन्दन करती हैं ।२२
वहाँ सुन्दर प्रेयसियो के अनुराग को बढ़ाने वाला युवको का परोपकारी पवित्र यौवन, प्रचुर अनाज से भरे तथा सुन्दर वालियो और वृक्षो को उत्पन्न करने वाले खेत के समान था ।३२१
भोगियो (विलासी, सर्प), पुण्यजनो (पवित्र लोग, राक्षम) तथा श्रीदातामओ (दानी, कुवेर के वहीं रहने के कारण वह श्रेष्ठ नगर पाताल, लवा और अलका का सङ्गम-मा बन गया था ।२४।।
वहां अपनी साध्वी पलियो का आलिंगन करने के अभिलापी युवक, परायी स्त्रियो को गले लगाने को उत्कण्ठित दुष्टो की तरह, असाधारण (उप्र) शगडो से क्रीडा-केलि को दूपित नहीं करते ।२५॥
यहाँ घु घरूओ के शब्द के बहाने लोगो को पुण्य के लिये प्रेरित करती हुई-सी विहारो की ध्वजायें चारो ओर फहराती हैं ।२६॥
विविध वस्तुओ मे भरी हुई तथा नगरवामियो को विभिन्न प्रकार से आनन्दित करने वाली हाटो की पक्ति राजद्वार तथा गोपुर तक शोभायमान है ।२७।
- वहीं राजाओं के. विलौर की भीतो वाले महल ऐसे सुन्दर लगते थे मानो वे चन्द्रमा की किरणों से मिश्रित तथा हिमपिण्डों से निर्मित हो ।२६॥