________________
नेमिनाथमहाकाव्य ]
[
२१
उनके निहासनारूढ होते ही उनके शत्रु म्लान हो जाते हैं । फलतः शत्रु-लक्ष्मी ने उनका इस प्रकार वरण किया जमे नवयौवना वाला विवाहवेला मे पति का । उनका राज्य पाशविक वल पर आश्रित नही है। वे केवल क्षमा को नपु सकता और निर्वाव प्रचण्डता को अविवेक मानकर, इन दोनो के समन्व्य के आधार पर ही, राज्य का सञ्चालन करते हैं (१।४३)। 'न खरो न भूयमा मृदुः' उनकी नीति का मूलमन्त्र है । प्रशासन के चारु सचालन के लिए उन्होंने न्यायप्रिय तथा शास्त्रवेत्ता मन्त्रियो को नियुक्त किया (११४७) । उनके म्मितकात ओष्ठ मित्रों के लिए अक्षय कोश लुटाते हैं, तो उनकी भ्रूभगिमा शत्रुओ पर वज्रपात करती है ।
वज्रदण्डायते सोऽय प्रत्यनोकमहीभुजाम् ।
कल्पद्रमायते काम पादद्वोपजीविनाम् ॥१११२ प्रजाप्रेम समुद्रविजय के चरित्र का एक अन्य गुण है । यथोचित करव्यवस्था मे उमने महज ही प्रजा का विश्वास प्राप्त कर लिया।
आकाराय ललो लोकाद् भागधेयं न तृष्णया ।।१।४५ नमुद्रविजय पुत्रवत्सल पिता हैं । पुत्रजन्म का समाचार सुनकर उनकी वाछे बिल जाती हैं। पुत्रप्राप्ति के उपलक्ष्य मे वे मुक्तहस्त से धन वितरित करते हैं, वन्दिया को मुक्त कर देते हैं तथा जन्मोत्सव का ठाटदार आयोजन करते हैं, जो निरन्तर वारह दिन चलता है । समुद्रविजय अन्तस् से धार्मिक व्यक्ति हैं । उनका वर्म सर्वोपरि है । बार्हत धर्म उन्हे पुत्र, पत्नी, राज्य तथा प्राणो से भी अधिक प्रिय है (११४२) ।
इस प्रकार समुद्रविजय त्रिवर्गमाधन मे रत हैं। इस सुव्यवस्था तथा न्यायपरायणता के कारण उनके राज्य में ममय पर वर्षा होती है, पृथ्वी रत्न उपजाती है और प्रजा चिरजीवी है । और वे स्वय राज्य को इस प्रकार निश्चिन्त होकर भोगते है जमे कामी कामिनी की कचन-काया को ।
समृद्धमभजद्राज्य स समस्तनयामलम् । कामीव कामिनीकाय स समस्तनयामलम् ॥१५४