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[ नेमिनाथमहाकाव्य
उपययौ शनरिह लाघव दिनगणो खलराग इवानिशम् । ववृधिरे च तुषारसमृद्धयोऽनुसमयं सुजनप्रणया इव ॥ ८१४८
पावस मे दामिनी की दमक, वर्षा की अविराम फुहार तथा शीतल वयार मादक वातावरण की सृष्टि करती हैं। पवन-झकोरे खाकर मेघमाला मधुर-मन्द्र गर्जना करती हुई गगनागन मे घूमती फिरती है । कवि ने वकाल के इस सहज दृश्य को पुन उपमा के द्वारा अद्धित किया है, जिससे अभिव्यक्ति को स्पष्टता तथा सम्पन्नता मिली है।
क्षरददभ्रजला कललिता सचपला चपलानिलनोदिता। दिवि चचाल नवाम्बुदमण्डली गजघटेव मनोभवभूपते ॥ ८॥३८
कवि की इस निरीक्षण शक्ति तथा ग्रहणशीलता के कारण शरत् के समूचे गुण प्रस्तुत पद्य मे साकार हो गये हैं ।
माप प्रसेदुः फलमा विपेचुहंसाश्चुकूजुर्जहसु कजानि । सम्भूय सानन्दमिवावतेरु शरद्गुणा सर्वजलाशयेषु ॥ १२
नेमिनाथमहाकाव्य के प्रकृति-चित्रण मे कही-कही प्रकृति का सश्लिष्टन्वाभाविक रूप दृष्टिगत होता है। इस श्लेवोपमा मे शरत् की महत्त्वपूर्ण विगेपतायें अनायास उजागर हो गयी हैं ।
रसविमुक्तविलोलपयोधरा हसितकाशलसत्पलितांकिता । क्षरत-पवित्रम-शालिकणद्विजा नयति कापि शेरजरती क्षिती ॥१४३
नेमिनाथमहाकाव्य मे पशु प्रकृति का भी अभिराम चित्रण हुआ है । यह, एक ओर, कवि की सूक्ष्म निरीक्षण शक्ति का साक्षी है और दूसरी ओर उसके पशु-जगत् की चेष्टाओ के गहन अध्ययन को व्यक्त करता है। हाथी का यह स्वभाव है कि वह रात भर गहरी नीद सोता है । प्रात काल जागकर भी