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नेमिनाथमहाकाव्य ]
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काव्य मे एक स्थान पर प्रकृति स्वागतकी के रूप मे प्रकट हुई है । रचयितुं ह्य चितामतिथिक्रियां पथिफमाह्वयतीव सगौरवम् । कुसुमिता फलिताम्रषणावली सुवयसां वयसां कलफूजिते. ॥८१८
इस प्रकार कीतिराज ने प्रकृति के विविध रूपो का चित्रण किया है । ह्रासकालीन नस्कृत महाकाव्यकारो की भांति उन्होंने प्रकृति चित्रण मे यमक की योजना की है, किन्तु उसका यमक न केवल दुरुहता से मुक्त है अपितु इससे प्रकृति-वर्णन की प्रभावशालता मे वृद्धि हुई है। सौन्दर्यचित्रण -
नेमिनाथमहाकाव्य मे कतिपय पात्रो के कायिक सौन्दर्य का हृदयहारी चित्रण किया गया है, किन्तु कवि की कला की सम्पदा राजीमती तथा देवागनाओ के चित्रो को ही मिली है। चिरप्रतिष्ठित परम्परा से हटकर किसी अभिनव प्रणाली की उद्भावना करना सम्भव नही था । इसीलिये अपने पात्रो के अगो-प्रत्यङ्गो के सौन्दर्य की अभिव्यक्ति के लिए कीतिराज ने नखशिखविधि का आश्रय लिया है, किन्तु उसके सादृश्य-विधान-कौशल के कारण उसके सभी सोन्दर्य-वर्णनो मे वरावर रोचकता वनी रहती है । नवीन उपमानो की योजना करने से काव्यकला मे प्रशसनीय भाव-प्रेपणीयता माई है। निम्नोक्त पद्य मे देवागनाओ की जघनस्थली की तुलना कामदेव की आसनगद्दी से की गई है, जिससे उसकी पुष्टता तथा विस्तार का तुरन्त भान हो जाता है।
वृता दुकूलेन सुकोमलेन विलग्नकांचीगुणजात्यरत्ना । विभाति यासा जघनस्थली सा मनोभवस्यासनगन्दिकेव ॥६४७ ।।
इसी प्रकार राजीमती की जवाओ को कदलीस्तम्भ तथा कामगज के * आलान के रूप में चित्रित करके एक ओर उनकी सुडौलता तथा शीतलता