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नैमिनाथमहाकाव्य ]
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के अतिरिक्त उनमे कतिपय काव्यरढियो का मनोयोगपूर्वक पालन किया गया है । यहाँ हम नेमिनाथमहाकाव्य में प्रयुक्त दो रूढियो की ओर विद्वानो का ध्यान आकृष्ट करना आवश्यक समझते हैं, क्योकि काव्य मे इनका विशिष्ट अध्ययन के लिये, रोचक सामग्री प्रभातवर्णन से है । प्रभात - वर्णन
उपलब्ध है ।
स्थान है तथा ये इन रूढ़ियो के तुलनात्मक प्रस्तुत करती हैं । प्रथम रूढि का सम्वन्ध की परम्परा कालिदास तथा उनके परवर्ती अनेक महाकाव्यों मे कालिदास का प्रभात वर्णन ( रघुवश, ५१६६ - ७५ ), आकार मे छोटा होता हुआ भी, मार्मिकता मे बेजोड है । माघ का प्रभात वर्णन वहुत विस्तृत है, यद्यपि प्रात काल का इस कोटि का अलकृत वर्णन समूचे साहित्य मे अन्यत्र दुर्लभ है । अन्य काव्यो मे प्रभात वर्णन के नाम पर विटपेषण अधिक हुआ है । कीर्तिराज का यह वर्णन कुछ लम्वा अवश्य है, किन्तु वह यथार्थता तथा सरसता से परिपूर्ण है । माघ की भाँति उसने न तो दूर की कौडी फैकी है और न वह ज्ञान प्रदर्शन के फेर मे पडा है । उसने तो, कुशल चित्रकार की तरह, अपनी ललित-प्राजल शैली मे प्रात कालीन प्रकृति के मनोरम चित्र अकित करके तत्कालीन वातावरण को सहज उजागर कर दिया है । मागवो द्वारा न खोलने तथा
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राजस्तुति, हाथी के जागकर भी मस्ती के कारण आँखें करवट बदलकर श्रृंखलारव करने और घोडो द्वारा नमक चाटने की रूढि का भी इस प्रसंग मे प्रयोग किया गया है । अपनी स्वाभाविकता तथा
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३. ध्याने मन स्व मुनिभिविलम्बित, विलम्वितं कर्कशरोचिषा तमः । सुष्वाप यस्मिन् कुमुद प्रभासित, प्रभासित पङ्कजबांधवोपलं. ॥ नेमिनाथ महाकाव्य, २०४१
४. निद्रासुख समनुनूय चिराय रात्रावुद्भूतशृङ्खलारवं परिवत्यं पार्श्वम् । प्राप्य प्रबोधमपि देव | गजेन्द्र एष नोन्मीलयत्यल नेत्रयुग
मदान्ध ॥
वही, २०५४