Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 8
________________ अर्थात् सिद्धान्त में कहे हुए प्रमाण द्वारा विषय रूप बने हुए अर्थ के अंश रूप और इतर अंशों की तरफ उदासीनता रूप ऐसा जो अभिप्राय विशेष है वह 'नय' कहा जाता है । नय के ऐसे अनेक लक्षण आचार्यों ने दिए हैं । (२) नय की उपमायें नय को अनेक उपमायें दी गई हैं । जैसे(१) नय - यह तत्त्वज्ञान के खजाना भण्डार को खोलने की 'कुंची ' है । ( २ ) नय - यह विश्व के विचारों और वर्तनों का सामाजिक के व्यक्तिगत बंधारण के पाया को निरीक्षण करानेवाली 'दीपिका' है । (३) नय - यह विश्व के विकट में विकट प्रश्न को उकेलनारी 'बाराखडी' है । (४) नय - यह सहिष्णुता रूप लता - करनेवाली 'मेघवृष्टि' है । सात को पोषण (५) नय - यह असंतोष और गैरसमझ का बहिष्कार करनेवाली 'राजाज्ञा' है ।

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