Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 6
________________ परः सहस्रा: शरदतपांसि, युगान्तरं योगमुपासतां वा । तथापि ते मार्गमनापतन्तो, ' न मोक्ष्यमारणा अपि यान्ति मोक्षम् ।। अर्थात् [ हे भगवन् ! ] अन्य साधक चाहे हजारों वर्षों तक तप करें या युग-युग तक योगसाधना करें; किन्तु जब तक वे नय से अनुप्राणित आपके मार्ग का अनुसरण नहीं करेंगे, तब तक वे मोक्ष की अभिलाषा करते हुए भी मोक्ष नहीं पा सकेंगे। (१), नय के लक्षण नय की व्याख्या इस प्रकार की जाती है (१) अनुयोगद्वार की वृत्ति में कहा है कि"सर्वत्रानन्तधर्माध्यासिते वस्तुनि एकांशग्राहको बोधो नयः।" सर्वत्र, अनंतधर्म से अध्यासित वस्तु में एक अंश को ग्रहण करनेवाला बोध 'नय' कहा जाता है । (२) प्रवचनसारोद्धार की वृत्ति में नय के सम्बन्ध में कहा है कि - पांच -

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