Book Title: Nayvimarsh Dwatrinshika
Author(s): Sushilsuri
Publisher: Sushilsuri Jain Gyanmandir

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Page 4
________________ समर्पण जिनके परम मंगल आशीर्वाद मेरे जीवन के सर्वांगीण विकास के परम साधन एवं प्रेरक बल बने हैं उन शासनसम्राट-मूरिचक्रचक्रवत्ति-तपागच्छाधिपति___ भारतीयभव्यविभूति-अखण्डब्रह्मतेजोमूत्तिमहाप्रभावशालि-परमपूज्याचार्यमहाराजाधिराज श्रीमद्विजयनेमिसूरीश्वरजी म. सा. के पट्टालंकार-साहित्यसम्राट्-व्याकरणवाचस्पतिशास्त्रविशारद-कविरत्न-परमशासनप्रभावक परमपूज्य-परमोपकारी-प्रगुरुदेवप्राचार्यप्रवर श्रीमद्विजयलावण्यसूरीश्वरजी म. सा. को सादर सविनय भावभरी वन्दनापूर्वक समर्पित __-विजयसुशीलसूरि SSSSSSSSSSSSSSSSS

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